Monday, 31 October 2022

ईश्वर की प्राप्ति ---

 ईश्वर की प्राप्ति ---

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महाशक्ति कुंडलिनी का परमशिव से मिलन ही योग है और यही योगसाधना का लक्ष्य है। कुंडलिनी जागृत होकर जब परमशिव से एकाकार हो जाती है, तब हम भी परमात्मा के साथ एक हो जाते हैं। यही ईश्वर की प्राप्ति है।
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योग साधना में सूक्ष्म जगत में ज्योतिर्मय कूटस्थ ब्रह्म के दर्शन जब ध्यान में होने लगते हैं, नाद की ध्वनि सुनाई देने लगती है, और कुंडलिनी जागरण भी होने लगता है, तब उसके पश्चात ही गुरुकृपा से धीरे धीरे सारे आध्यात्मिक रहस्य अनावृत होते हैं।
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ध्यान सदा विष्णु या परमशिव के अनंत रूप का ही किया जाता है, यथार्थ में दोनों एक ही हैं। कंबल के आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह कर के बैठिए, मेरुदंड उन्नत रहे, ठुड्डी भूमि के समानान्तर रहे, अर्धोन्मीलित नेत्रों के दोनों गोलक बिना किसी तनाव के भ्रूमध्य के समीप रहें। भगवान से प्रार्थना करो और स्वयं को उनके अनंत प्रकाशमय विस्तार में समर्पित कर दो। आगे का मार्गदर्शन वे स्वयं करेंगे।
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विष्णु सहस्त्रनाम का आरंभ "ॐ विश्वं विष्णु:" शब्दों से होता है। इन तीन शब्दों में ही सारा सार आ जाता है। आगे सब इन्हीं का विस्तार है। आध्यात्मिक दृष्टि से यह पूरी सृष्टि यानि सम्पूर्ण ब्रह्मांड ही विष्णु है। जो कुछ भी सृष्ट या असृष्ट है, वह सब विष्णु है। हम विष्णु में विष्णु को ढूंढ रहे हैं। ढूँढने वाला भी विष्णु है। एक महासागर की बूंद, महासागर को ढूंढ रही है। यह बूंद समर्पित होकर स्वयं भी महासागर है।
"ॐ विश्वं विष्णु: वषट्कारो भूत-भव्य-भवत-प्रभुः।
भूत-कृत भूत-भृत भावो भूतात्मा भूतभावनः॥१॥" (विष्णु सहस्त्रनाम)
जिसका यज्ञ और आहुतियों के समय आवाहन किया जाता है उसे वषट्कार कहते हैं। भूतभव्यभवत्प्रभुः का अर्थ भूत, वर्तमान और भविष्य का स्वामी होता है। सब जीवों के निर्माता को भूतकृत् कहते हैं, और सभी जीवों के पालनकर्ता को भूतभृत्। आगे कुछ बचा ही नहीं है। "ॐ विश्वं विष्णु: ॐ ॐ ॐ" --- बस इतना ही पर्याप्त है पुरुषोत्तम के गहरे ध्यान में जाने के लिए।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० सितंबर २०२२

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