निराकार से तृप्ति नहीं मिलती। साकार रूप में मुझे भगवान की जितनी आवश्यकता इस समय है उतनी तो इस जीवन में कभी भी नहीं थी। भगवान निराकार रूप में नहीं, साकार रूप में चाहिएँ, अभी और इसी समय। अब और प्रतीक्षा नहीं हो सकती। मुझे न तो निर्विकल्प-समाधि चाहिए, न कोई आनंद या अन्य अनुभूति।
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भगवान ने अब तक तो मँगते-भिखारियों से ही मिलवाया है जिनके लिए भगवान केवल कुछ माँगने के लिए एक साधन मात्र है, साध्य तो उनके लिए संसार है। वे भगवान की जो भी आराधना करते हैं, वह कुछ माँगने के लिए ही करते हैं। ऐसे लोगों की भगवान मुझे शक्ल भी न दिखलाएँ। यह संसार मँगते-भिखारियों से ही भरा पड़ा है, जिनसे मुझे कोई मतलब नहीं है। मुझे न तो किसी की दुआ चाहिए, और न किसी का आशीर्वाद। मुझे किसी की शुभ मंगल कामना भी नहीं चाहिए। मुझे आवश्यकता सिर्फ परमात्मा की है, वह भी साकार रूप में। उपदेश और ज्ञान देने वाले दूर रहें। मुझे उनकी आवश्यकता नहीं है।
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भगवान यदि स्वयं को प्रकट नहीं करना चाहते तो कोई बात नहीं। लेकिन वे भी याद रखें कि मुझे उनकी आवश्यकता साकार रूप में है, निराकार में नहीं। नुकसान उन्हीं का है, उनका एक भक्त संसार में कम हो जाएगा। मुझे कोई नुकसान नहीं है। पता नहीं कितने जन्मों में कितनी बार मरे हैं। एक बार और मर जायेंगे, लेकिन दर्शन करेंगे तो साकार रूप में ही करेंगे।
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यह मेरा दुर्भाग्य या पुण्यों में कुछ कमी है कि ऐसे लोग मुझे नहीं मिलते जिनके हृदय में भगवान के लिए Unconditional Love हो, यानि किसी भी तरह की शर्त न हो, जिनको परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं चाहिए। मैं ऐसे लोगों के साथ, उन्हीं के मध्य रहना चाहता हूँ जो दिन-रात, दिन में २४ घंटे, सप्ताह में सातों दिन सिर्फ परमात्मा का ही बिना किसी माँग या शर्त के चिंतन करते हों।
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लेकिन सबसे पहिले साकार रूप में उनके दर्शन चाहियें। मुझे सिर्फ भगवान की ही आवश्यकता है, अन्य किसी की या कुछ की नहीं। उपदेश देने वाले मुझसे दूर रहें।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ सितंबर २०२२
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