परमात्मा के प्रति जो प्रेम हमारे हृदय में छिपा हुआ है, उसकी निरंतर अभिव्यक्ति हो, यही मनुष्य जीवन की सार्थकता है ---
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साकार रूप में जो भगवान श्रीगणेश हैं, निराकार ओंकार रूप में वे ही सर्वव्यापी ज्योतिर्मय ब्रह्म हैं। वे ही आत्म-तत्व हैं, पंचप्राण उनके ही गण हैं। पंचप्राणों के पाँच सौम्य और पाँच उग्र रूप -- दस महाविद्यायें हैं। वे ही सर्वव्यापी आत्मा हैं, जिसमें विचरण से धर्म के सारे गूढ़ तत्व हमारे समक्ष प्रकट हो जाते हैं। उनकी उपासना से सब देवों की उपासना हो जाती है।
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साकार ध्यान साधना -- या तो भगवान शिव, या भगवान विष्णु, या उनके किसी अवतार की होती है।
जैसी भी किसी की श्रद्धा हो, जैसी भी प्रेरणा भगवान से मिले, वैसी ही साधना अपने पूर्ण प्रेम (भक्ति) से सभी को करनी चाहिए। यही मनुष्य जीवन का उद्देश्य है। अधिक लिखने को इस समय और कुछ नहीं है।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
४ सितंबर २०२२
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