Monday 31 October 2022

भगवान का कार्य ---

भगवान का कार्य ---
भगवान ने एक कार्य सौंपा है मुझे; वह है उनके परमप्रेम को (यानि स्वयं उन्हें) शांत रूप से समष्टि में व्यक्त करना। वह कार्य मुझे निमित्त यानि एक उपकरण बना कर वे स्वयं कर रहे हैं। मैं धन्य हूँ, कि मुझे भी भगवान ने इस कार्य के लिए चुना है। मेरा जीवन धन्य हुआ।
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गीता में उनका यही संदेश है। भगवान जब कहते हैं -- "मामेकं शरणं व्रज", तब "माम्" शब्द से वे अपना स्वयं का परिचय दे रहे हैं। जिस के स्मरण मात्र से जीवात्मा मुक्त हो जाती है, उस "विष्णु सहस्त्रनाम" के आरंभ में ही उनका परिचय दिया गया है कि वे कौन है? -- "ॐ विश्वं विष्णु: वषट्कारो भूत-भव्य-भवत-प्रभुः।" यह पंक्ति ही नहीं, सम्पूर्ण स्तोत्र ही भगवान का परिचय है।
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ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के १६४वें सूक्त की ४६वीं ऋचा कहती है --
"इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्य: स सुपर्णो गरुत्मान्।
एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिश्वानमाहु:॥"
यहाँ "एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति" का आजकल के राजनेता, मार्क्सवादी और कुतर्की अधर्मी अपने अधर्म को धर्म सिद्ध करने के लिए गलत अर्थ बताते हैं। वास्तविक अर्थ है कि ईश्वर ही एकमात्र सत्य है। उसी सत्य का हमें अनुसंधान करना है।
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"कृष्णं वंदे जगत्गुरूं" -- भगवान श्रीकृष्ण सभी गुरुओं के गुरु हैं। वे ही कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म है, और वे ही कूटस्थ नादब्रह्म ओंकार हैं। जब भी समय मिले अपनी कमर को सीधी रखते हुए एक कंबल के आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह रखते हुए बैठ जाओ। अपने पूर्ण प्रेम से, पूर्ण श्रद्धा-विश्वास से, भ्रूमध्य में कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म का ध्यान करो, और कूटस्थ अक्षर को सुनो। कूटस्थ रूप में वह ज्योतिर्मय ब्रह्म सर्वत्र व्याप्त है। सब कुछ उसी में समाहित है। पूर्ण श्रद्धा से उस ज्योतिर्मय ब्रह्म के गहन और दीर्घ ध्यान और नादश्रवण से --
गुरुकृपा भी होती है, अजपा-जप भी होने लगता है, कुंडलिनी भी जागृत हो जाती, शास्त्रों को समझने की भी शक्ति भी आ जाती है, और ईश्वर की प्राप्ति भी हो जाती है।
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शास्त्रों के स्वाध्याय से, ब्रह्मचर्य के पालन से, आध्यात्मिक साधना से और गुरुकृपा से मैं उसी तरह आप सब को परमात्मा की ओर ले कर जा रहा हूँ, जिस तरह से यह पृथ्वी चंद्रमा को साथ लेकर सूर्य की परिक्रमा कर रही है। भगवान में श्रद्धा और विश्वास रखो। आप परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति हैं, और मेरे प्रिय निजात्मगण हैं। ईश्वर से आपका साक्षात्कार कराना यानि जीवन में भगवत् प्राप्ति कराना मेरा दायित्व है। आप न चाहेंगे तो भी मैं आपको उठाकर अमृत कुंड में धकेल दूंगा। आप सब के माध्यम से ही मैं ईश्वर की साधना/उपासना कर रहा हूँ। मैं मेरे गुरु और परमात्मा के साथ एक हूँ।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ परमात्मने नमः !!
कृपा शंकर
३० अक्तूबर २०२२

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