Monday, 31 October 2022

भगवती कुंडलिनी महाशक्ति ---

 भगवती कुंडलिनी महाशक्ति ---

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आत्मप्रेरणावश ही दो शब्द इस विषय पर लिख रहा हूँ, जो बुद्धि का नहीं, अनुभव का विषय है। इस छोटे से लेख में जो कुछ भी लिख रहा हूँ, वह शत-प्रतिशत अनुभूति-जन्य है। कहीं से किसी की किंचित भी नकल नहीं की है, और न ही किसी शास्त्र का उद्धरण दिया है। जो नियमित ध्यान साधना करते हैं, वे इसे बहुत आसानी से समझ पाएंगे, केवल बुद्धिमान होना ही पर्याप्त नहीं है।
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तंत्र शास्त्रों की भाषा हर कोई नहीं समझ सकता। या तो उसे समझाने वाला कोई सिद्ध गुरु हो, या फिर भगवती की कृपा हो। सिर्फ बुद्धि से तो उन्हें कोई नहीं समझ सकता। जो कुछ भी मुझे समझ में आया है वह भगवती की कृपा से ही समझ में आया है। पुस्तकों से तो कभी कुछ भी समझ में नहीं आया। पहले भगवती की कृपा हुई, उसके बाद ही समझने की शक्ति प्राप्त हुई, और जैसी भी मेरी पात्रता थी, उसी के अनुरूप वैसा ही और उतना ही ज्ञान स्वयं ही मुझ में जागृत हो गया।
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कुंडलिनी महाशक्ति -- मनुष्य देह में स्थित प्राण-तत्व का ही घनीभूत रूप है। प्राण-तत्व की समझ भगवती की कृपा से ध्यान में ही होती है। भगवती कुंडलिनी को किसी भी तरह के कर्मकांड या आराधना से नहीं जगाया जा सकता। भगवती हमारी श्रद्धा, विश्वास, भक्ति और समर्पण देखकर स्वयं ही जागृत होती हैं, और हमें जगाती हैं। हमारी कोई औकात नहीं है कि हम उन्हें जगा सकें।
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कुंडलिनी जागरण के क्या लाभ हैं?
इससे हमारी आध्यात्मिक समझ बढ़ती है, और सूक्ष्म जगत का ज्ञान होता है। सूक्ष्म देह के मेरुदंड में स्थित सुषुम्ना नाड़ी का और उसमें स्थित चक्रों का ज्ञान होता है। सभी चक्रों और सहस्त्रार की जटिलताएँ समझ में आती हैं। ब्रह्मरंध्र का ज्ञान होता है। सूक्ष्म जगत में सचेतन रूप से इस देह से बाहर जाने और बापस लौटने की कला भी भगवती की कृपा से ही प्राप्त होती है। आत्मसूर्य के दर्शन होते हैं। उन रश्मियों के दर्शन और उनका बोध बना रहता है, जिनके सहारे हम भगवद्धाम जा सकते हैं। परमशिव का बोध और प्राप्ति भी भगवती की कृपा से होती है। एक सत्य यह भी है भगवान की प्राप्ति हमें भगवती की कृपा से ही हो सकती है। मुझे तो एक ही लाभ हुआ है कि भगवान की निरंतर स्मृति और प्रेम बना रहता है।
कुंडलिनी जागृत हो जाये तो हमें हमारा आचरण और विचार सही रखने पड़ते हैं। अन्यथा लाभ के स्थान पर बहुत अधिक हानि हो सकती है।
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आप सब को बहुत बहुत धन्यवाद जो इस लेख को पढ़ा। मैं एक अकिंचन और अनाड़ी व्यक्ति हूँ, मुझे कुछ आता-जाता नहीं है। भगवती की कृपा से ही आप सब मुझे इतना प्रेम करते हो। मैं आपके किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाऊँगा, इसलिए पूछने का कष्ट न करें। धन्यवाद !!
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२ सितंबर २०२२

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