मन ख्वाहिशों में अटका रहा और जिंदगी मुझे जी कर चली गई ---
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मेरे जीवन में आप जैसे शानदार और अद्भुत मित्र हैं, यह मेरे लिए गर्व की बात है। ग्रेगोरियन कलेंडर के अनुसार इस शरीर का जन्म ३ सितंबर को हुआ था।
मैं और मेरे परिवार के सभी सदस्य हिन्दी तिथि से भाद्रपद अमावस्या को मनाते हैं।
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"न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने, न होता मैं तो क्या होता"
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"एक अजीब रिश्ता है मेरे और ख्वाहिशों के दरमियां
वो मुझे जीने नहीं देती और में उन्हें मरने नहीं देता
ज़िन्दगी ने मेरे मर्ज का एक कारगर इलाज बताया
वक़्त को दवा कहा और ख्वाहिशो का परहेज़ बताया
उम्र भारी है पर ख्वाहिशें सारी है,
ख्वाहिशों के आगे अक्सर उम्र हारी है"
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आज के दिन गीता के पांचवें अध्याय का स्वाध्याय कर रहा हूँ। पुनश्च आप सब को नमन। आप का जीवन शुभ और मंगलमय हो। ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
३ सितंबर २०२२
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