Thursday 25 November 2021

हिन्दुत्व पर हो रहे प्रहार और भारत की पीड़ा ---

 

हिन्दुत्व पर हो रहे प्रहार और भारत की पीड़ा --- (संशोधित व पुनर्प्रस्तुत लेख)
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(१) हिन्दुत्व क्या है? --- जीवन में पूर्णता का सतत प्रयास, अपनी श्रेष्ठतम सम्भावनाओं की अभिव्यक्ति, परम तत्व की खोज, दिव्य अहैतुकी परमप्रेम, करुणा और परमात्मा को समर्पण -- हिन्दुत्व है। हिन्दुत्व ही भारत की अस्मिता, संस्कृति और पहिचान है। श्रीअरविंद के अनुसार सनातन हिन्दू धर्म ही भारत है, और भारत ही सनातन हिन्दू धर्म है। अनगिनत युगों में मिले संस्कारों से यहाँ की संस्कृति का जन्म हुआ है। इस संस्कृति का आधार ही सनातन धर्म है। यदि यह संस्कृति और धर्म नष्ट हो गए तो यह राष्ट्र भारत भी नष्ट हो जाएगा। भारत नष्ट हुआ तो यह सृष्टि भी नष्ट हो जाएगी।
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परमात्मा की सर्वाधिक और सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति भारत में ही हुई है। भारत एक प्रकाश-स्तम्भ की तरह सम्पूर्ण सृष्टि का मार्गदर्शन कर रहा है। भारत नहीं रहा तो मनुष्य जाति ही आपस में लड़कर नष्ट हो जाएगी। जीवन के सारे सद्गुण और जो भी सर्वश्रेष्ठ है, वह भारत की ही देन है।
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(२) भारत की पीड़ा --- धर्म-निरपेक्षता, सर्वधर्म समभाव और आधुनिकता आदि नामों से हमारी अस्मिता पर मर्मान्तक प्रहार हो रहे हैं। एक षड़यंत्र के अंतर्गत भारत की शिक्षा और कृषि व्यवस्था को नष्ट कर दिया गया है। हमारे में हीन भावना भरने के लिए झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है। पशुधन को कत्लखानों में कत्ल कर के विदेशों में भेजा जा रहा है। बाजार में मिलने वाला दूध असली नहीं है। विदेशों से आयातित दूध के पाउडर को घोलकर थैलियों में बंद कर असली दूध के नाम से बेचा जा रहा है। संस्कृति के नाम पर फूहड़ नाच गाने परोसे जा रहे हैं। हमारी कोई नाचने गाने वालों की संस्कृति नहीं है। हमारी संस्कृति -- ऋषि-मुनियों, महाप्रतापी धर्मरक्षक वीर राजाओं, ईश्वर के अवतारों, वेद वेदांगों, दर्शनशास्त्रों, धर्मग्रंथों और संस्कृत साहित्य की है। जो कुछ भी भारतीय है, उसे हेय दृष्टी से देखा जा रहा है। विदेशी मूल्य थोपे जा रहे हैं। देश को निरंतर खोखला, निर्वीर्य और धर्महीन बनाया जा रहा है।
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परोपकार, सब के सुखी व निरोगी होने और कल्याण की कामना हिन्दू संस्कृति में ही है, अन्यत्र नहीं। अन्य मतावलम्बी सिर्फ अपने मत के अनुयाइयों के कल्याण की ही कामना करते हैं, उससे परे नहीं। औरों के लिए तो उनके मतानुसार अनंत काल तक नर्क की ज्वाला ही है। उनका ईश्वर भी मात्र उनके मतावलंबियों पर ही दयालू है। उनके ईश्वर की परिकल्पना भी एक ऐसे व्यक्ति की है जो अति भयंकर और डरावना है, जो उनके मतावलम्बियों को तो सुख ही सुख देगा और दूसरों को अनंत काल तक नर्क की अग्नि में तड़फा तड़फा कर आनंदित होगा। पर-पीड़ा से आनंदित होने वाले ईश्वर से भय करना व अन्य मतावलंबियों को भयभीत और आतंकित करना ही उनकी संस्कृति है।
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समुत्कर्ष, अभ्युदय और नि:श्रेयस की भावना -- सनातन हिदू धर्म का आधार हैं। अन्य संस्कृतियाँ इंद्रीय-सुख और दूसरों के शोषण की कामना पर ही आधारित हैं। मैंने विश्व के अनेक देशों की यात्राएँ की हैं, और वहाँ के जीवन को प्रत्यक्ष देखा है। मैं जो कुछ भी लिख रहा हूँ, वह अपने अनुभव से लिख रहा हूँ।
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धर्मनिरपेक्षतावादियों, सर्वधर्मसमभाववादियों और अल्पसन्ख्यकवादियों से मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि आपकी धर्मनिरपेक्षता, सर्वधर्मसमभाववाद और अल्पसंख्यकवाद तभी तक है जब तक भारत में हिन्दू बहुमत है। हिन्दुओं के अल्पमत में आते ही भारत भारत नहीं रहेगा, और हम सब का वही हाल होगा जो पाकिस्तान और बंगलादेश के हिन्दुओं का हुआ है। यह अनुसंधान का विषय है कि वहाँ के देवालय, मन्दिर और वहाँ के हिन्दू कहाँ गए? क्या उनको धरती निगल गई, या आसमान खा गया? आपके सारे के सारे उपदेश और सीख क्या हिन्दुओं के लिए ही है? यह भी अनुसंधान का विषय है कि भारत के भी हजारों देवालय और मंदिर कहाँ गए? यहाँ की तो संस्कृति ही देवालयों और मंदिरों की संस्कृति थी।
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हम विनाश के कगार पर खड़े हैं। सनातन धर्म ही भारत का भविष्य है। सनातन धर्म ही भारत की राजनीति हो सकती है। भारत का भविष्य ही विश्व का भविष्य है। भारत की संस्कृति और हिन्दूत्व का नाश ही विश्व के विनाश का कारण होगा। क्या पता उस विनाश का साक्षी होना ही हमारी नियति हो ---
"हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर,
बैठ शिला की शीतल छाँह
एक पुरुष, भीगे नयनों से
देख रहा था प्रलय प्रवाह |
नीचे जल था ऊपर हिम था,
एक तरल था एक सघन,
एक तत्व की ही प्रधानता
कहो उसे जड़ या चेतन |
दूर दूर तक विस्तृत था हिम
स्तब्ध उसी के हृदय समान,
नीरवता-सी शिला-चरण से
टकराता फिरता पवमान | (कामायनी)
हो सकता है कि उस व्यक्ति की पीड़ा ही हमारी पीड़ा हो, और उसकी नियति ही हमारी भी नियति हो।
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मेरे ह्रदय की यह पीड़ा समस्त भारत की पीड़ा है, जिसे मैंने व्यक्त किया है। मुझे पता है की मुझे क्या करना है, और वह करने का प्रयास भी कर रहा हूँ। मुझे किसी को और कुछ भी नहीं कहना है। यह मेरे ह्रदय की भावनाओं की एक अभिव्यक्ति मात्र है। किसी से मुझे कुछ भी नहीं लेना देना है। सिर्फ एक प्रार्थना मात्र है आप सब से कि अपने देश भारत के धर्म और संस्कृति की रक्षा करें।
वन्दे मातरम्। भारत माता कीजय।
वन्दे मातरम्।
सुजलां सुफलां मलय़जशीतलाम्,
शस्यश्यामलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।१।।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदां वरदां मातरम् । वन्दे मातरम् ।।२।।
कोटि-कोटि कण्ठ कल-कल निनाद कराले,
कोटि-कोटि भुजैर्धृत खरकरवाले,
के बॉले माँ तुमि अबले,
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।३।।
तुमि विद्या तुमि धर्म,
तुमि हृदि तुमि मर्म,
त्वं हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि माँ शक्ति,
हृदय़े तुमि माँ भक्ति,
तोमारेई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे। वन्दे मातरम् ।।४।।
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्,
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।५।।
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्,
धरणीं भरणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।६।। (वंदे मातरम्)
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ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२४ नवंबर २०२१

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