श्रद्धा और विश्वास ---
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हमारे कूटस्थ में स्वयं परमात्मा और सभी देवताओं का निवास है। समस्त ज्ञान और सारी सिद्धियाँ भी यहीं हैं। आवश्यकता चेतना के स्तर को ऊंचा उठाने की है। समस्त ज्ञान, समस्त उपलब्धियाँ, और पूर्णता कहीं बाहर नहीं हैं। ये सब हमारी चेतना में ही हैं। चेतना के स्तर को ऊंचा उठाओ, सारी उपलब्धियाँ स्वयं को अनावृत कर हमारे साथ एक हो जायेंगी।
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ज्ञान का एकमात्र स्त्रोत परमात्मा है। पुस्तकों से कोई ज्ञान नहीं मिलता। ज्ञान परमात्मा की कृपा से ही मिलता है। पुस्तकों से तो सूचना मात्र ही मिलती है। परमात्मा से जुड़ने के पश्चात सारा आवश्यक ज्ञान स्वतः ही प्राप्त हो जाता है। परमात्मा के लिए थोड़ी सी भी तड़प व प्यास ह्रदय में है तो उसे निरंतर बढाते रहें। पूर्ण तृप्ति व आनंद सिर्फ परमात्मा में ही है।
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वेदान्त के दृष्टिकोण से ध्यान-भाव को भी तज कर केवल ध्येय-स्वरूप में सर्वदा स्थित रहना चाहिए। यह एक बहुत गहरे रहस्य की बात है जो गुरुकृपा से ही समझ में आ सकती है।
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जीवन में हमें जो कुछ भी मिलता है वह हमारी श्रद्धा और विश्वास से ही मिलता है। बिना श्रद्धा और विश्वास के कुछ भी नहीं मिलता। हम जो भी कर्मकांड करते हैं, जो भी साधना या उपासना करते हैं, उनकी सफलता हमारी श्रद्धा और विश्वास पर ही निर्भर है। बिना श्रद्धा और विश्वास के कभी सफलता नहीं मिलती। भगवान की भक्ति भी पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से करें, तभी सफलता मिलेगी।
"भवानी शङ्करौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम्॥"
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सदा अपनी चेतना को आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य उत्तरा-सुषुम्ना में रखने का अभ्यास करें। वहीं अपने इष्ट-देव/देवी के बीजमंत्र का मानसिक जप करते हुए ध्यान करें। जब वह बीजमंत्र स्वतः ही सुनाई देने लगे तब उसे खूब सुनें। कमर सदा सीधी रखें। साधनाकाल में सत्यनिष्ठा से सात्विक आचरण और मर्यादित जीवन का ध्यान रखें, अन्यथा लाभ के सथान पर हानि होगी। श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करें, सारे संदेह दूर होंगे। सब पर भगवान की कृपा अवश्य होगी।
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ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ नमः शिवाय !!
कृपा शंकर
२५ नवंबर २०२१
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