Friday, 26 November 2021

गुरु-कृपा .....

 गुरु-कृपा .....

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एक ज्योति ऐसी है जो कभी भी बुझाई नहीं जा सकती| वह ज्योति हम स्वयं हैं| हमारा मौन और एकाग्रता ही परमात्मा का सिंहासन है| लक्ष्य स्पष्ट हो, दृढ़ आत्मविश्वास और उत्साह हो, संतुलित वाणी हो, आजीविका का पवित्र साधन हो, स्वस्थ देह और मन हो, परमात्मा से प्रेम हो, फिर और क्या चाहिए?
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चेतना में जब गुरु रूप ब्रह्म निरंतर कर्ता और भोक्ता के रूप में बिराजमान हों, उनके श्रीचरणों में आश्रय मिल गया हो, अनाहत नाद की ध्वनी अंतर में निरंतर सुन रही हो, ज्योतिर्मय ब्रह्म निरंतर कूटस्थ में हों, परमात्मा की सर्वव्यापकता का निरंतर आभास हो, सम्पूर्ण चेतना परम प्रेममय हो गयी हो, तब और कौन सी उपासना या साधना बाकी बची है?
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हे गुरु रूप ब्रह्म आपकी जय हो| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ नवंबर २०२०

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