Thursday, 25 November 2021

भगवान हमारे अंतर में व्यक्त होते हैं, कहीं बाहर नहीं ---

 

भगवान -- परमप्रेम और दिव्य आनंद की एक अनुभूति हैं, कोई आकाश से उतर कर आने वाले व्यक्ति नहीं। एक बार उन की अनुभूति हो जाये तो पूरी सत्यनिष्ठा से उन की चेतना में स्वयं का लय कर दो। भगवान हमारे अंतर में व्यक्त होते हैं, कहीं बाहर नहीं।
.
यह भगवान की ज़िम्मेदारी है कि वे हमें अपना बोध करायें, और हमें तृप्त कर दें। जैसे एक पिता अपने पुत्र के बिना नहीं रह सकता, वैसे ही वे भी हमारे बिना नहीं रह सकते, और हमारे प्रेम के लिए तरसते हैं। उनसे प्रेम हो जाये तो वे और नहीं छिप सकते, उन्हें हमारे अंतर में प्रकट होना ही पड़ता है।
.
हे प्रभु, यह अब आपकी ज़िम्मेदारी है कि मुझे अपने दृष्टिपथ में रखो। जैसे एक पुत्र का अपने पिता के प्रेम पर पूरा अधिकार होता है, वैसे ही आपके पूर्णप्रेम पर मेरा पूर्ण जन्मसिद्ध अधिकार है। मैंने तो नहीं कहा था कि मुझे इस तरह इस संसार-सागर में भटकाओ। जब आपने भटका ही दिया है तो इस भटकाव से मुक्त करने का दायित्व अब आपका ही बनता है। बिना किसी विलंब के मुझे तुरंत इसी समय अपने साथ एक करो। 
.
२४ नवंबर २०२१

No comments:

Post a Comment