Saturday, 8 March 2025

भगवती से प्रार्थना है कि भारत से असत्य का अंधकार पूरी तरह दूर हो, और सत्य-सनातन-धर्म की पुनःस्थापना हो ---

 भगवती से प्रार्थना है कि भारत से असत्य का अंधकार पूरी तरह दूर हो, और सत्य-सनातन-धर्म की पुनःस्थापना हो।

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भगवान विष्णु स्वयं ही यह सारी ज्योतिर्मय सृष्टि बन गए हैं। उनके सिवाय कोई अन्य नहीं है। उनकी प्रकृति अपने नियमानुसार इस सृष्टि का संचालन कर रही है। हमारा सुषुम्ना-पथ सदा ज्योतिर्मय रहे। मूलाधारचक्र से सहस्त्रारचक्र के मध्य प्राणायाम करते-करते देवभाव प्राप्त होता है, और हम चाहें तो सब प्रकार की सिद्धियाँ भी मिल सकती हैं। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गीता में बताई हुई ब्राह्मी-स्थिति में निरंतर रहने की साधना करें। भौतिक देह की चेतना शनैः शनैः कम होने लगेगी। सर्दी-गर्मी, सुख-दुःख और मान-अपमान को प्रतिक्रियारहित सहन करना एक महान तपस्या है। करोड़ों तीर्थों में स्नान करने का जो फल है, ऊर्ध्वस्थ कूटस्थ सूर्यमण्डल में पुरुषोत्तम के निरंतर ध्यान और दर्शन से वही फल प्राप्त होता है। कूटस्थ चक्र ही भगवती श्री का पादपद्म, और सभी देवताओं का आश्रय स्थल है। उसमें स्थिति ही आनंद और मोक्ष है। भगवती श्री साक्षात रूप से वहीं बिराजमान हैं। मन को बलात् बार बार सच्चिदानंद ब्रह्म में लगाये रखना हमारा परम कर्तव्य है। मन और इन्द्रियों की एकाग्रता -- परम तप है, समदृष्टि ही ब्रह्म्दृष्टि है। कूटस्थ गुरु-रूप-ब्रह्म को पूर्ण समर्पण व नमन ! सम्पूर्ण अस्तित्व उन्हीं की अभिव्यक्ति है, कहीं भी "मैं" और "मेरा" नहीं। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१ मार्च २०२५
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पुनश्च: --- श्रीगुरु चरण-पादुका को नमन ॥
ॐ नमो गुरुभ्यो गुरुपादुकाभ्यो। नमः परेभ्यः परपादुकाभ्यः॥
आचार्य सिद्धेश्वर पादुकाभ्यो। नमोस्तु लक्ष्मीपति पादुकाभ्यः॥१॥
कामादि सर्प वज्रगारुड़ाभ्यां। विवेक वैराग्य निधि प्रदाभ्यां॥
बोध प्रदाभ्यां द्रुत मोक्षदाभ्यां। नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥२॥
अनंत संसार समुद्रतार, नौकायिताभ्यां स्थिर भक्तिदाभ्यां।
जाक्याब्धि संशोषण बाड़याभ्यां, नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥३॥
ऐंकार ह्रींकार रहस्ययुक्त, श्रींकार गुढ़ार्थ महाविभुत्या।
ऊँकार मर्मं प्रतिपादिनीभ्यां, नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥४॥
होत्राग्नि हौत्राग्नि हविष्य होतृ, होमादि सर्वकृति भासमानम्।
यद ब्रह्म तद वो धवितारिणीभ्यां, नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥५॥
(श्री गुरु पादुका पंचकम्)

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