भगवान के नाम को सदा जपने वाले का कभी पतन नहीं होता
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आचार्य चाणक्य ने अपने नीति ग्रंथ के तीसरे अध्याय के ग्यारहवें श्लोक में पाप, दरिद्रता, कलह और भय का कारण और निदान बताया है --
“उद्योगे नास्ति दारिद्रयं जपतो नास्ति पातकम्।
मौनेन कलहो नास्ति जागृतस्य च न भयम्॥”
इसका भावार्थ यह है कि निरंतर उद्यमी व्यक्ति कभी दरिद्र नहीं होता, भगवान के किसी नाम को सदा जपने वाले व्यक्ति से कभी कोई पाप नहीं होता, मौन व्यक्ति से कोई कलह नहीं होता, और सदा जागरूक व्यक्ति को कोई भय नहीं रहता।
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स्वामी रामसुखदास जी ने गीता का जो भाष्य लिखा है उसके १६वें अध्याय के भाष्य के आरंभ में ही इस बात को बहुत अच्छी तरह से समझाया है। इसे समझने के लिए उनके ग्रंथ का स्वाध्याय करना होगा।
संत दादू दयाल के परम भक्त संत रज्जब अली खान ने अपनी वाणी में लिखा है कि हरिः, गुरु और संसार कहीं हमसे नाराज न हो जाये, इसलिए निरंतर हरिः भजन आवश्यक है। भगवान के भजन करने वाले को किसी से कोई भय नहीं रहता।
"हरिडर, गुरुडर, जगतडर, डर करनी में सार।
रज्जब डर्या सो ऊबर्या, गाफिल खायी मार॥"
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हम जो भी साधन कर रहे हैं, उसी में उत्साह और तत्परता से लगे रहें तो हमारे ज्ञात और अज्ञात सब पाप दूर हो जाएँगे, व अन्तःकरण (मन बुद्धि चित्त अहंकार) स्वतः शुद्ध हो जायेगा। इस बात का मनन कीजिये। ॐ तत्सत् ॥
कृपा शंकर
२ मार्च २०२५
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