Saturday, 8 March 2025

मैं एक ऐसे बिन्दु पर पहुँच गया हूँ, जहाँ लिखने के लिए और कुछ भी नहीं है ---

मैं एक ऐसे बिन्दु पर पहुँच गया हूँ, जहाँ लिखने के लिए और कुछ भी नहीं है। हरेक व्यक्ति को चाहे वह घोर वामपंथी हो या घोर नास्तिक, ईश्वर की अनुभूति कभी न कभी जीवन में अवश्य होती है। कोई जमाना था जब सभी कम्युनिष्ट देशों में ईश्वर पर आस्था रखने वालों को या तो पागलखाने में मरने के लिये डाल दिया जाता या मृत्युदंड दे दिया जाता था। इस समय विश्व में केवल एक ही देश उत्तरी-कोरिया बचा है जहाँ ईश्वर पर आस्था रखने की सजा मृत्यु दंड है।
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रूस में जब कम्यूनिज़्म अपने चरम शिखर पर था, उस समय लोग एक अज्ञात भय से ग्रसित रहते थे और ईश्वर के बारे में कुछ भी बोलने से डरते थे। लेकिन वहाँ भी कुछ मित्रों ने एकांत में मेरे कान में फुसफुसाकर ईश्वर में अपनी आस्था व्यक्त की है। भगवान के बारे में ज़ोर से बोलने में लोग वहाँ डरते थे कि कोई सुन लेगा तो चुगली कर के गिरफ्तार करवा देगा।
ऐसे ही मुस्लिम देशों में गैर-मुस्लिम लोगों को हेय दृष्टि से देखा जाता है। कई मुस्लिम देशों का भ्रमण मैंने किया है, और यह अपने अनुभव से लिख रहा हूँ।
यूरोपियन लोग गैर-यूरोपियन को हेय दृष्टि से देखते हैं। चीनी लोग अपने से पृथक अन्यों को हेय दृष्टि से देखते हैं, अफ्रीकन लोगों से तो वे घृणा करते हैं।
भारत में भी रंगभेद है, साँवले रंग के लोगों को यहाँ भी ओछी दृष्टि से देखा जाता है।
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भारत में ही मुझे एक ऐसा अति घोर मार्क्सवादी नमूना आदमी मिला है जो मार्क्स, लेनिन, और फ़्रेडरिक एंगेल्स की फोटो की अगरबत्ती जलाकर नित्य पूजा करता था। उसके लिए ये ही देवता थे।
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पहले दिल्ली से 'सरिता' नाम की एक पाक्षिक पत्रिका निकलती थी जो खुलकर धर्मद्रोही थी। धर्मद्रोही विचारों को उस समय भारत में सत्ता का संरक्षण प्राप्त था।
फिर भी भारत में धर्म बचा है और निरंतर विस्तृत हो रहा है। इसका कारण यही है कि हरेक व्यक्ति को परमात्मा की अनुभूति अवश्य होती है।
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जब भी आपको भगवान की अनुभूति हो, भगवान का भजन अवश्य करें। आगे का मार्गदर्शन भगवान अवश्य करेंगे। श्रद्धा और विश्वास है तो नित्य नियमित रूप से भगवान का भजन करें। जिस भी मनःस्थिति में आप हैं, उसी के अनुसार अपना भजन करें। सभी को धन्यवाद और नमन॥ और कहने के लिए मेरे पास अन्य कुछ भी इस समय नहीं है।
कृपा शंकर
२७ फरवरी २०२५
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पुनश्च: --- जब भारत में नक्सलवादी आंदोलन अपने चरम पर था, तब चीन का चेयरमेन 'माओ त्से तुंग' उनका देवता था। नक्सलवादियों ने भारत में उस समय बहुत अधिक उत्पात मचाया था। बाद में पुलिस ने उनको मारना शुरू किया तो लगभग आधे नक्सलवादी तो पुलिस की गोली का शिकार हो गये, और बाकी बचे आधों ने तत्कालीन सरकार से माफी मांग ली और समाज की मुख्य धारा में आ गये। कानू सन्याल नाम के आदमी ने नक्सलवादी आंदोलन आरंभ किया था। वह जीवन में इतना कुंठित हो गया था कि उसने स्वयं को फांसी लगाकर आत्म-हत्या कर ली। उसका मुख्य चेला चारू मजूमदार था, जो पुलिस की हिरासत में हृदयाघात से मर गया। इस तरह भारत में नक्सलवादी आंदोलन का अंत हुआ।
आजकल जो लोग स्वयं को नक्सलवादी बताते हैं वे वास्तव में गुंडे-बदमाश हैं जो दूसरों को डराने और लूटने के लिए खुद को नक्सलवादी बताते हैं। नक्सलवाद से उनका कोई लेना-देना नहीं है। नक्सलवाद एक अति उग्र मार्क्सवादी सिद्धांत था जो चीन के माओ को ही अपना आदर्श और सर्वस्व मानता था।

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