Saturday, 8 March 2025

जिनको हम गौतम बुद्ध कहते हैं, वे विष्णु के अवतार नहीं थे। विष्णु का अवतार अन्य ही कोई बुद्ध होगा ---

 जिनको हम गौतम बुद्ध कहते हैं, वे विष्णु के अवतार नहीं थे। विष्णु का अवतार अन्य ही कोई बुद्ध होगा ---

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आजकल एक बहस चल रही जिसमें कुछ विद्वानों का मत है कि गौतम बुद्ध नाम के व्यक्ति कभी हुए ही नहीं थे। महावीर की नकल कर के उनके काल्पनिक व्यक्तित्व को गढ़ा गया है। मैं इस बहस में पड़ना नहीं चाहता। दोनों पर ही मैंने अध्ययन किया है और लिखा भी है।
मैं आस्तिक हूँ, वेदों को अपौरुषेय मानता हूँ। नास्तिक मतों का अनुयायी नहीं हूँ, लेकिन उनका पूर्ण सम्मान करता हूँ। जिनको हम गौतम बुद्ध कहते हैं, वे विष्णु के अवतार नहीं थे। विष्णु का अवतार अन्य ही कोई बुद्ध होगा। यहाँ बौद्ध-मत के बारे में कुछ ज्ञात तथ्यों को लिख रहा हूँ जिनका पता बहुत कम लोगों को है --
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(1) महावीर स्वामी -- गौतम बुद्ध से आयु में 36 वर्ष बड़े थे।
(2) भारत से चीन में सन 0067 ई. में दो हिन्दू ब्राह्मण गये, जिनके नाम कश्यपमातंग और धर्मरत्न थे। उन्होंने चीन में बौद्ध मत फैलाया।
(3) ईसा की छठी सदी में चीन के हुनान प्रांत में स्थित शाओलिन मंदिर से एक भारतीय हिन्दू बौद्ध भिक्षु जिसका नाम बोधिधर्म था, जापान गये और उन्होने जापान में बौद्ध धर्म फैलाया जो Zen Buddhism कहलाया।
(4) बुद्ध की मृत्यु के बाद 500 वर्षों तक उनके उपदेश लिखे ही नहीं गये थे। श्रीलंका के अनुराधापुर में बुद्ध की मृत्यु के 500 वर्षों के बाद एक सभा हुई जिसमें पहली बार उनकी शिक्षाओं को पाली भाषा में लिपिबद्ध किया गया। जिन्होंने उसे मान्यता दी वे महायान, और अन्य हीनयान कहलाये। भारत से दक्षिण में हीनयान मत फैला, और उत्तर में महायान।
(5) दक्षिण-पूर्व एशिया में कुछ हिन्दू ब्राह्मण बौद्ध-मत का प्रचार करने गये जहां उन्होंने एक विशाल नदी को देखा। उन्होंने उस नदी का नाम "माँ-गंगा" रखा। अपभ्रंस होते होते उस नदी का नाम माँ-गंगा से मेकोंग हो गया। वह नदी उस क्षेत्र की जीवन दायिनी है। उस नदी के जल को लेकर चीन और विएतनाम में युद्ध भी हो चुका है, और अभी भी तनाव है।
(6) चीन का युद्ध तो रूस से भी एक बार उसूरी और अमूर नदियों के जल को लेकर हो चुका है। रूस और चीन में एक बार युद्ध फिर और होगा, क्योंकि रूस के प्रसिद्ध नगर व्लादिवोस्तोक का क्षेत्र वास्तव में चीन का है; जिसे अंग्रेजों ने चीन से छीन कर रूस को दे दिया था। चीन किसी भी कीमत पर वह क्षेत्र बापस चाहता है। व्लादिवोस्तोक का सामरिक महत्व इतना अधिक है कि रूस उसे कभी बापस नहीं लौटायेगा। मंगोलिया से व्लादिवोस्तोक तक बौद्ध-मत फैला था। मैं रूस के व्लादिवोस्तोक में बहुत अच्छी तरह घूमा-फिरा हूँ, और उस क्षेत्र को भलीभाँति जानता हूँ।
(7) तिब्बत में जो बौद्ध-मत फैला उसे वज्रयान कहते हैं। तिब्बती लामा -- तंत्र में आस्था रखते हैं, और माँ छिन्नमस्ता की उपासना करते हैं। तिब्बत में देवी का नाम कुछ अन्य है। माँ छिन्नमस्ता का निवास मणिपुरचक्र के पद्म में है, और वे सुषुम्ना की उपनाड़ी वज्रा में विचरण करती हैं, व उनका बीज "हुं" है। इसीलिए वज्रयान मत का साधना मंत्र -- "ॐ मणिपद्मे हुं" है। इसका अर्थ हुआ कि मणिपुर पद्मस्थ भगवती छिन्नमस्ता को नमन॥ हिमाचल प्रदेश के चिंत्यपूरणी देवी के मंदिर में उपासना के लिए बहुत से तिब्बती लामा आते हैं।
(८) हीनयान मत श्रीलंका और दक्षिणपूर्व देशों जैसे थाईलैंड (स्याम) आदि में फैला है। इन दोनों देशों का भ्रमण भी मैंने किया है। बैंकॉक में सोने से बनी बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा है। वहाँ के एक मंदिर में शुद्ध पन्ने से बनी बुद्ध प्रतिमा है। उस मंदिर की दीवारों पर चारों ओर चित्रों में रामायण अंकित है। वह मंदिर वास्तव में दर्शनीय है। इन्डोनेशिया में भी मुझे कुछ हीनयान बौद्ध मिले हैं। वहाँ जावा और कालीमंथन द्वीपों का भ्रमण किया है। वहाँ की बड़ी बड़ी दुकानों का नाम रामायण या उसके पात्रों के ऊपर है।
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बौद्ध मत को पूरे विश्व में ब्राह्मणों ने फैलाया, और ब्राह्मणों ने ही पूरे भारत से बौद्ध मत का खंडन कर भारत की मुख्य भूमि से बाहर कर दिया। चीन में तो कोई बौद्ध मंदिर मुझे नहीं मिला लेकिन ताइवान, जापान और दक्षिण कोरिया में अवश्य वहाँ के एक दो बौद्ध मठों का भ्रमण किया है। दक्षिण कोरिया में एक बहुत ऊंची पहाड़ी पर स्थित एक बौद्ध मठ में एक स्थानीय मित्र के साथ गया था। मेरे स्थानीय मित्र ने दुभाषिये का काम किया। वहाँ मठ में उन लोगों ने मेरा पूरा सत्कार किया। उनकी प्रार्थनाओं और भाषा को तो मैं नहीं समझ सका, लेकिन उनके व्यवहार से मैं प्रभावित अवश्य हुआ। बहुत पहले श्रीलंका में भी अनुराधापुर की कुछ स्मृतियाँ हैं। श्रीलंका में भाषा की समस्या नहीं है क्योंकि सभी अङ्ग्रेज़ी बोल लेते हैं।
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अंत में यही कहना चाहता हूँ कि धर्म की मेरी परिकल्पना और आस्था मनुस्मृति, महाभारत, रामायण और योगदर्शन पर आधारित है। जो वेदों को अपौरुषेय मानता है, वह आस्तिक है। जो वेदों को अपौरुषेय नहीं मानता, वह नास्तिक है। ॐ तत्सत्॥ ॐ ॐ ॐ ॥
कृपा शंकर
6 मार्च 2025
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पुनश्च: --- बहुत पहिले की बात है। यूक्रेन के ओडेसा नगर में एक वयोवृद्ध तातार मुस्लिम महिला ने मुझे अपने घर पर निमंत्रित किया। वह बहुत विदुषी महिला थी, जो अपने जीवन के दस वर्ष चीन की जेलों में राजनीतिक बंदी के रूप में काट चुकी थी। उसने मुझे बताया कि पूरे मध्य एशिया में इस्लाम के आगमन से पूर्व बौद्ध मत था। लेकिन परिस्थितियाँ ऐसी बनीं कि सभी को बौद्ध मत को त्याग कर इस्लाम अपनाना पड़ा। वहाँ दो और मुस्लिम विद्वान मित्र मिले जो स्वयं को भारतीय मूल का बताते थे। उन्होने भी सप्रमाण बताया कि पूरा मध्य एशिया बौद्ध था, जो अभी इस्लाम मतानुयायी है।

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