यह जीवन स्वधर्म और राष्ट्र के प्रति समर्पित है ---
जो निरंतर दिन-रात परमात्मा का चिंतन करते हैं, परमात्मा का ही स्वप्न देखते हैं, और परमात्मा को ही निज जीवन में व्यक्त करते हैं, मैं उनके साथ एक हूँ; वे चाहे इस पृथ्वी या सृष्टि के किसी भी भाग में रहते हों। हम शाश्वत आत्मा हैं, जिन का स्वधर्म -- परमात्मा की प्राप्ति है। परमात्मा को भूलना ही परधर्म है।
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पूरे भारत में राष्ट्रभक्ति जागृत हो। सभी भारतीय सत्यनिष्ठ, कार्यकुशल और धर्मावलम्बी बनें। भारत में कहीं भी अधर्म न रहे। धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों मे सद्भावना हो, और विश्व का कल्याण हो। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ फरवरी २०२५
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