अजपा-जप :--- यह ज्योतिर्मय ब्रह्म का ध्यान है। वेदों में इसका नाम हंसवती ऋक है, योग-शास्त्रों में यह हंसयोग है, और सामान्य बोलचाल की भाषा में अजपा-जप कहलाता है। हंस नाम परमात्मा का है। कम से कम शब्दों का प्रयोग यहाँ इस लेख में मैं कर रहा हूँ।
प्रातःकाल उठते ही लघुशंकादि से निवृत होकर, रात्रि में शयन से पूर्व, और दिन में जब भी समय मिले, ध्यान के आसन पर सीधे बैठ जाएँ, मेरूदण्ड उन्नत, ठुड्डी भूमि के समानान्तर, दृष्टिपथ भ्रूमध्य में से अनंत की ओर, व मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें। भ्रूमध्य में उन्नत साधकों को एक ब्रह्मज्योति यानि ज्योतिर्मय ब्रह्म के दर्शन होंगे। जिन्हें ज्योति के दर्शन नहीं होते, वे आभास करें कि वहाँ एक परम उज्ज्वल श्वेत ज्योति है। उस ज्योति का विस्तार सारे ब्रह्मांड में कर दें। सारी सृष्टि उस ज्योति में समाहित है, और वह ज्योति सारी सृष्टि में है। वह शाश्वत ज्योति आप स्वयं हैं, यह नश्वर भौतिक देह नहीं।
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अपनी सर्वव्यापकता का ध्यान कीजिये। आप यह शरीर नहीं, वह परम ज्योति हैं। सारा ब्रह्मांड आपके साथ सांसें ले रहा है। जब सांस अंदर जाती है तब मानसिक रूप से सो SSSSSSS का जाप कीजिये। जाव सांस बाहर जाती है तब हं SSSSS का जाप कीजिये।
यह जप आप नहीं, सारी सृष्टि और स्वयं परमात्मा कर रहे हैं। इस साधना का विस्तार ही शिवयोग और विहंगमयोग है। यह साधना ही विस्तृत होकर नादानुसंधान बन जाती है। क्रियायोग में प्रवेश से पूर्व भी इसका अभ्यास अनिवार्य है, नहीं तो कुछ भी समझ में नहीं आयेगा। पुनश्च: कहता हूँ कि "हंस" नाम परमात्मा का है।
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यह लेख केवल परिचयात्मक है। इस अजपा-जप साधना का अभ्यास अन्य कुछ साधनाओं के साथ समर्पित भाव से मैं तो सन १९७९ ई. से कर रहा हूँ। इसका वर्णन अनेक ग्रन्थों में है जिनका स्वाध्याय मैंने किया है। , लेकिन सबसे अधिक स्पष्ट "तपोभूमि नर्मदा" नामक पुस्तक के पांचवें खंड के मध्य में है। वहाँ इसे अति विस्तार से समझाया गया है। गूगल पर ढूँढने से यह पुस्तक मिल जाएगी। यह खंड मैंने गत वर्ष ही पढ़ा था। फिर भी किसी अनुभवी ब्रहमनिष्ठ आचार्य से मार्गदर्शन अवश्य प्राप्त करें। यह साधना ब्रह्मांड के द्वार साधक के लिए खोल देती है। इस लेख में जो लिखा है वह केवल परिचय मात्र है।
ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ फरवरी २०२५
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पुनश्च: -- कुछ गुरु-परम्पराओं में हंसबीज "सोहं" के स्थान पर "हंसः" का प्रयोग होता है। दोनों का फल एक ही है। अङ्ग्रेज़ी में इसका अनुवाद होगा -- "I am He"। यह साधना आध्यात्म में प्रवेश करवाती है, और सभी उन्नत साधनाओं का आधार है। कम से कम शब्दों में जो लिखा जा सकता है वह मैंने यहाँ लिखा है। इससे अधिक जानने के लिए ग्रन्थों का स्वाध्याय करना होगा, या किसी ब्रह्मनिष्ठ महात्मा से उपदेश लेने होंगे। ॐ तत्सत् !!
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