Saturday, 8 March 2025

समर्पण ---

 समर्पण ---

यह मन बुद्धि चित्त व अहंकार रूपी अन्तःकरण, ये भौतिक सूक्ष्म व कारण शरीर, अपनी तन्मात्राओं सहित सारी इंद्रियाँ, सारी विद्याएँ, सारा ज्ञान, पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म, सम्पूर्ण अस्तित्व और पृथकता का समस्त मिथ्या बोध -- परमात्मा को समर्पित है। अब निंदा प्रशंसा शिकायत व आलोचना करने को कुछ भी शेष नहीं रहा है। स्वयं परमात्मा ही यह नौका, इसके कर्णधार, व इसके लक्ष्य हैं। वे ही यह महासागर, उसकी अनंतता व एकमात्र और सम्पूर्ण व्यक्त/अव्यक्त अस्तित्व हैं। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ फरवरी २०२५

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