दयालु गुरु को बारंबार प्रणाम् है ---
गुरुजी के हृदय में शिष्य का निवास है, और शिष्य के हृदय गह्वर में गुरुजी का। गुरुजी और कुछ नहीं करते शिष्य को गुरु बना कर मुक्त कर देते हैं।
हे गुरुदेव ! मुझ अकिंचन पर अपनी परम कृपा कर के मुझे सदा याद रखें। मैं आप का स्मरण न कर सकूँ तो आप ही मेरा स्मरण कर मुझे तमोगुणी निद्रा से जगा दें।
हे गुरु महाराज, आप और मैं एक हैं। किसी भी तरह की साधना की अब और सामर्थ्य मुझ में नहीं रही है। मेरा यह सारा जीवन ऐसे ही नष्ट हो चुका है, सिर्फ आप का ही भरोसा है। अब तो अनुग्रह करो। मैं आपका बालक हूँ, आपका अनुग्रह ही मुझे बचा सकता है, अन्य कुछ भी नहीं। मेरी आपसे यही प्रार्थना है। मेरा सर्वस्व आपको समर्पित है।
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ मार्च २०२५
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