Saturday, 8 March 2025

चार बातें बहुत सोच -समझ कर अपने पूर्ण विवेक से लिख रहा हूँ ---

 प्रिय निजात्मगण, आप सब मेरी ही आत्मा और मेरे ही प्राण हो। इसलिए आपको चार बातें बहुत सोच -समझ कर अपने पूर्ण विवेक से लिख रहा हूँ। मुझे क्षमा कीजिये, इन से अतिरिक्त मेरे पास अन्य कुछ भी नहीं है --

(१) परमात्मा से प्रेम करो। (२) परमात्मा से और भी अधिक प्रेम करो। (३) अपने पूर्ण हृदय, मन और शक्ति के साथ परमात्मा से प्रेम करो। (४) परमात्मा को इतना अधिक अपने पूर्ण हृदय, मन और क्षमता से प्रेम करो कि आप स्वयं ही प्रेममय हो जायें। आप में और परमात्मा में कोई भेद न रहे। स्वयं की चेतना को पूर्णतः उनमें समर्पित कर दीजिये।
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मेरी बात आप को अच्छी लगी हो तो ठीक है, आप का उपकार मानता हूँ। मेरे पास कहने को इससे अधिक अन्य कुछ भी इस समय नहीं है। आप सब को शुभ कामनाएँ और पुनश्चः नमन। ॐ तत्सत् | ॐ गुरु॥
कृपा शंकर
६ मार्च २०२५

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