Saturday 19 October 2019

यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ......

यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ......
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मनुष्य जीवन का उद्देश्य ईश्वर की प्राप्ति है, न कि स्वर्ग की प्राप्ति. यदि कोई अपने पुण्यों से स्वर्ग जाता भी है तो पुण्य समाप्त होने पर बापस वहाँ से निकाल दिया जाता है| शास्त्रों के अनुसार स्वर्ग भी और नर्क भी अनेक श्रेणियों के अनेक हैं| कोई बापस लौट कर तो बताता नहीं है कि वहाँ की वास्तविकता क्या है|
दो ही वृतांत मेरे पढ़ने में आए हैं कि किसी ने बापस आकर अपने अनुभव बताये हैं|
(१) "योगी कथामृत" (Autobiography of a Yogi) पुस्तक में स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरी अपनी भौतिक मृत्यु के बाद अपने शिष्य स्वामी योगानन्द गिरी (परमहंस योगनन्द) के समक्ष सशरीर प्रकट होकर उन्हें सूक्ष्म जगत और नर्क/स्वर्ग आदि के बारे में विस्तार से बताते हैं|
(२) "चित्तशक्तिविलास" नामक पुस्तक में स्वामी मुक्तानन्द जी स्वयं जीवित रहते हुए भी अपने तपोबल से सशरीर नर्क और स्वर्ग में घूम कर आने और इन्द्र देवता से भी मिल कर आने का अपना अनुभव लिखते हैं|

और भी कई मनीषियों ने इस विषय पर लिखा है पर उपरोक्त दो पुस्तकें तो बहुत अधिक लोकप्रिय हुई हैं|
महाभारत में मुद्गल ऋषि कि कथा है जिन्हें लेने के लिए स्वर्ग से विमान आता है, पर वे स्पष्ट रूप से किसी भी ऐसे स्वर्ग में जाने से मना कर देते हैं जहाँ से पुण्यक्षय होने पर बापस लौट कर आना पड़ता है| महाभारत में ऐसे और भी अनेक वृतांत हैं|
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मृत्यु के बाद जाने के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान कौन सा है जिसका प्रयास हमें करना चाहिए :----
गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं :--
"न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः| यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम||१५:६||"
अर्थात उस(परमपद) को न सूर्य, न चन्द्र और न अग्नि ही प्रकाशित कर सकती है और जिसको प्राप्त होकर जीव लौटकर (संसारमें) नहीं आते, वही मेरा परमधाम है|
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जहाँ हमारे इष्ट देव है वहीं हमें जाना है, उस से कम किसी भी अन्य स्थान पर नहीं| हमें तो सुख-शांति अपने इष्टदेव से जुड़कर ही मिलेगी जिनके हम अंश हैं| कोई स्वर्ग-नर्क हमें नहीं चाहिए| स्वर्ग तो एक घटिया स्थान है जहाँ जाकर हम अपने इष्ट देव को भूल जाते हैं| जहाँ हमारे भगवान वासुदेव हैं हम तो वहीं उनके साथ ही रहेंगे, अन्य कहीं भी नहीं, क्योंकि उनके बिना हम नहीं रह सकते|
"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः| तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम||१८:७८||"
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२९ सितंबर २०१९

1 comment:

  1. स्वर्ग-नर्क की बातें बड़ी फालतू और घटिया लगती हैं|
    स्वर्ग जाने की कामना से अधिक घटिया और फालतू दूसरी कोई बात है ही नहीं|

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