Saturday 19 October 2019

आपकी भक्ति करने में हम असमर्थ हैं, आप ही हमारा कल्याण करें .....

आपकी भक्ति करने में हम असमर्थ हैं, आप ही हमारा कल्याण करें .....
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वासनायें हमें अंदर ही अंदर इतना अधिक शक्तिहीन कर देती हैं कि हम परमात्मा को उपलब्ध होने की शक्ति खो देते हैं| शास्त्र कहते हैं कि अभ्यास, वैराग्य और सत्संग द्वारा हम वासनाओं से ऊपर उठें| यह सर्वाधिक कठिन कार्य है| कुछ समझ में ही नहीं आता कि वासनायें कहाँ से आती हैं, पर ये हमारे अंतर में बहुत अधिक विध्वंस कर जाती हैं, वैसे ही जैसे भयंकर तूफान आते हैं और सर्वनाश कर जाते हैं| महात्मा लोग कहते हैं कि भगवान में मन लगाओ| पर कैसे मन लगायें? मन लगाते ही यह वासनारूपी शैतान आकर सर्वनाश कर जाता है|
{इब्राहिमी मतों (ईसाईयत, इस्लाम और यहूदी मत) में जिसे शैतान कहा गया है, वह कोई व्यक्ति नहीं, ये वासनायें ही हैं|} शैतान चाहे जितना भी शक्तिशाली हो, अंततः उसकी पराजय सुनिश्चित है|
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भगवान श्रीकृष्ण के ये वचन बड़ा आश्वासन देते हैं .....
(१)
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते| तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्||९:२२||"
अर्थात अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्तजन मेरी ही उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ||
(२)
"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि| अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि||१८:५८||"
अर्थात मच्चित्त होकर तुम मेरी कृपा से समस्त कठिनाइयों (सर्वदुर्गाणि) को पार कर जाओगे और यदि अहंकारवश (इस उपदेश को) नहीं सुनोगे, तो तुम नष्ट हो जाओगे||
(३)
"अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्| साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः||९:३०||"
अर्थात यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्यभाव से मेरा भक्त होकर मुझे भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है||
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हे प्रभु, हमारे में तो इतनी शक्ति नहीं है कि आपकी इस दुस्तर माया को पार कर सकें| आप ही अनुग्रह कर के हमारी रक्षा करें और अपने श्रीचरणों में आश्रय दें| हमारे में इतनी सामर्थ्य नहीं है कि अंत समय में आपका स्मरण कर सकें| यह देह तो भस्म हो जाएगी आप ही अनुग्रह कर के हमारा स्मरण कर लेना| आपकी कृपा हमें पार लगा देगी| हम आपकी कृपा और अनुग्रह पर ही निर्भर हैं|

"वायुरनिलममृतमथेदं भस्मांतं शरीरम्‌| ॐ क्रतो स्मर कृतं स्मर क्रतो स्मर कृतं स्मर||"
(ईशावास्योपनिषद मंत्र १७)
मेरा प्राण सर्वात्मक वायु रूप सूत्रात्मा को प्राप्त हो क्योकि वह शरीरों में आने जाने वाला जीव अमर है; और यह शरीर केवल भस्म पर्यन्त है इसलिये अन्त समय में हे मन ! ॐ का स्मरण कर, अपने द्वारा किए हुये कर्मों का स्मरण कर, ॐ का स्मरण कर, अपने द्वारा किये हुए कर्मों का स्मरण कर||
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ॐ तत्सत | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ सितंबर २०१९

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