Friday 6 January 2017

भोजन के नियम / किसका अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए ? ....

हम जो भी भोजन करते हैं वह हम स्वयं नहीं ग्रहण करते बल्कि अपनी देह में स्थित परमात्मा को अर्पित करते हैं, जिससे समस्त सृष्टि तृप्त होती है| भोजन इसी भाव से भोजन-मन्त्र बोलकर भगवान को अर्पित कर के करना चाहिए|
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१ पाँच अंगों ( दो हाथ, २ पैर, मुख ) को अच्छी तरह से धो कर ही भोजन करें !
२. गीले पैरों खाने से आयु में वृद्धि होती है !
३. प्रातः और सायं ही भोजन का विधान है !
४. पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके ही खाना चाहिए !
५. दक्षिण दिशा की ओर किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है !
६ . पश्चिम दिशा की ओर किया हुआ भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है !
७. शैय्या पर, हाथ पर रख कर, टूटे फूटे वर्तनो में भोजन नहीं करना चाहिए !
८. मल मूत्र का वेग होने पर, कलह के माहौल में, अधिक शोर में, पीपल, वट वृक्ष के नीचे, भोजन नहीं करना चाहिए!
९ परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए !
१०. खाने से पूर्व अन्न देवता, अन्नपूर्णा माता की स्तुति कर के, उनका धन्यवाद देते हुए, तथा सभी भूखो को भोजन प्राप्त हो ईश्वर से ऐसी प्रार्थना करके भोजन करना चाहिए !
११. भोजन बनने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से, मंत्र जप करते हुए ही रसोई में भोजन बनाये और सबसे पहले ३ रोटिया अलग निकाल कर (गाय, कुत्ता, और कौवे हेतु ) फिर अग्नि देव का भोग लगा कर ही घर वालो को खिलाये !
१२. इर्षा, भय, क्रोध, लोभ, रोग, दीन भाव, द्वेष भाव, के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है !
१३. आधा खाया हुआ फल, मिठाईया आदि पुनः नहीं खानी चाहिए !
१४. खाना छोड़ कर उठ जाने पर दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए !
१५. भोजन के समय मौन रहे !
१६. भोजन को बहुत चबा चबा कर खाए !
१७. रात्री में भरपेट न खाए !
१८. गृहस्थ को ३२ ग्रास से ज्यादा न खाना चाहिए !
१९. सबसे पहले मीठा, फिर नमकीन, अंत में कडुवा खाना चाहिए !
२०. सबसे पहले रस दार, बीच में गरिस्थ, अंत में द्रव्य पदार्थ ग्रहण करे !
२१. थोडा खाने वाले को --आरोग्य, आयु, बल,सुख, सुन्दर संतान और सौंदर्य प्राप्त होता है !
२२. जिसने ढिढोरा पीट कर खिलाया हो वहाँ कभी न खाए !
२३. कुत्ते का छुवा, रजस्वला स्त्री का परोसा, श्राध का निकाला, बासी, मुहसे फूक मरकर ठंडा किया, बाल गिरा हुवा भोजन, अनादर युक्त, अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करे !

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जैसा अन्न हम खायेंगे वैसा ही हमारा मन बनेगा| अतः हमारी परम्परानुसार हमें ऐसे लोगों के यहाँ कुछ भी आहार या पानी तक भी ग्रहण नहीं करना चाहिए .......
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(1) चरित्रहीन स्त्री के हाथ से बना हुआ भोजन नहीं खाना चाहिए| उसके घर पर भी कभी भोजन नहीं करना चाहिए|
(2) जो लोग दूसरों की विवशता का लाभ उठाते हुए अनुचित रूप से अत्यधिक ब्याज प्राप्त करते हैं, यानि दूसरों का खून चूसते हैं, उनके हाथ से भी कुछ स्वीकार नहीं करना चाहिए|
(3) गंभीर बीमारी से पीड़ित या संक्रामक रोग से ग्रस्त रोगी के घर भी भोजन नहीं करना चाहिए|
(4) स्वभाव से क्रोधी व्यक्ति के यहाँ भी भोजन नहीं करना चाहिए|
(5) किन्नर के यहाँ भोजन नहीं करना चाहिए |
(6) निर्दयी क्रूर अमानवीय मांसाहारी के घर का भी भोजन नहीं खाना चाहिए|
(7) जिन लोगों की आदत दूसरों की चुगली करने की होती है, उनके यहाँ या उनके द्वारा दिए गए खाने को भी ग्रहण नहीं करना चाहिए|
(8) जो लोग नशीली चीजों का व्यापार करते हैं, उनके यहाँ भी भोजन नहीं करना चाहिए|
(9) भिखारी के हाथ का या उसके घर का भी भोजन नहीं करना चाहिए|

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