Thursday, 1 September 2016

समर्पण .....

समर्पण .....
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सूर्य, चन्द्र और तारों को चमकने के लिए क्या साधना करनी पडती है?
पुष्प को महकने के लिए कौन सी तपस्या करनी पडती है?
महासागर को गीला होने के लिए कौन सा तप करना पड़ता है?
शांत होकर प्रभु को अपने भीतर बहने दो|
उसकी उपस्थिति के सूर्य को अपने भीतर चमकने दो|
जब उसकी उपस्थिति के प्रकाश से ह्रदय पुष्प की भक्ति रूपी पंखुड़ियाँ खिलेंगी तो उसकी महक अपने ह्रदय से सर्वत्र फ़ैल जायेगी|
कभी जब आप एक अति उत्तुंग पर्वत के शिखर से नीचे की गहराई में झांकते हो तो वह डरावनी गहराई भी आपमें झाँकती है| ऐसे ही जब आप नीचे से अति उच्च पर्वत को घूरते हो तो वह पर्वत भी आपको घूरता है| जिसकी आँखों में आप देखते हो वे आँखें भी आपको देखती हैं| जिससे भी आप प्रेम या घृणा करते हो उससे वैसी ही प्रतिक्रिया कई गुणा होकर आपको ही प्राप्त होती है|
वैसे ही जब आप प्रभु को प्रेम करते हो तो वह प्रेम अनंत गुणा होकर आपको ही प्राप्त होता है| वह प्रेम आप स्वयं ही हो| प्रभु में आप समर्पण करते हो तो प्रभु भी आपमें समर्पण करते हैं| जब आप उनके शिवत्व में विलीन हो जाते हो तो आप में भी वह शिवत्व विलीन हो जाता है और आप स्वयं साक्षात् शिव बन जाते हो| जहाँ ना कोई क्रिया-प्रतिक्रिया है, ना कोई मिलना-बिछुड़ना, जहाँ कोई अपेक्षा या माँग नहीं है, जो बैखरी मध्यमा पश्यन्ति और परा से भी परे है, वह असीमता, अनंतता व सम्पूर्णता आप स्वयं ही हो|
आपका पृथक अस्तित्व उस परम प्रेम और परम सत्य को व्यक्त करने के लिए ही है|
ॐ नमः शिवाय| शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि | ॐ ॐ ॐ ||

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