Thursday 1 September 2016

मेरा जन्मदिवस ........

आज भाद्रपद अमावस्या है| आज से ६८ वर्ष पूर्व आज ही के दिन ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार दिनांक 03 सितम्बर 1948 थी, जब मध्याह्न के लगभग 3.30 बजे भारतीय समयानुसार इस भौतिक देह का जन्म तत्कालीन शेखावाटी जनपद के झूँझणु (झुंझुनूं) नगर में हुआ था| कहते हैं इस नगर को सैंकड़ों वर्ष पूर्व किसी वीर योद्धा झुझार सिंह जाट ने बसाया था, जिसके नाम पर यह वर्त्तमान में झुंझुनूं कहलाता है|
जीवन की अनेक मधुर/कटु स्मृतियाँ हैं, पर अब उनका महत्व नहीं है|
पता नहीं कितनी बार जन्म लिया है और कितनी बार मरे हैं| पता नहीं कौन कौन लोग किस किस जन्म में मेरे सम्बन्धी थे| सभी के अनुभव मेरे ही अनुभव हैं|
अब तो सभी मेरे सम्बन्धी हैं| परमात्मा में हम सब एक हैं| कोई मुझसे पृथक नहीं है| आप सब दिव्यात्माओं को मैं नमन करता हूँ| आप सब मेरी ही निजात्मा हो|
ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमःशिवाय |
.
आज इस क्षेत्र के सभी सती मंदिरों के वार्षिकोत्सव हैं| मध्यकाल में हुई ये सब सतियाँ वीरांगणाएँ थीं| उन के वंशज इनको अपनी कुलदेवी मानकर इनकी उपासना करते हैं| आज के परिप्रेक्ष्य में आज की पीढी के लिए इसे समझना कठिन है|
यहाँ के श्री राणी सती जी मंदिर में आज प्रातः वार्षिक पूजा आरम्भ हो गयी है और पूरे भारत से आये हजारों श्रद्धालु (लगभग एक लाख) आज लौटना आरम्भ कर देंगे|
.
इस क्षेत्र में अरावली पर्वतमाला में स्थित लोहार्गल तीर्थ की चौबीस कोसीय परिक्रमा का भी अभी समापन हुआ है| सूर्य कुंड में स्नान के पश्चात सभी आये हुए साधू-संत और लाखों श्रद्धालु आज लौटना आरम्भ कर देंगे|
.
इस क्षेत्र में खाटू श्याम जी, सालासर बालाजी, शाकम्भरी माता, जीण माता, लोहार्गल, और श्री राणी सती जी आदि प्रसिद्ध धार्मिक स्थान हैं| यहाँ की प्राचीन हवेलियाँ, खंडहर हो चुके प्राचीन किले, और प्राचीन मंदिर दर्शनीय हैं| कभी यह क्षेत्र बहुत अधिक समृद्ध रहा है| अब भी तुलनात्मक रूप से बहुत समृद्ध है|
शमी वृक्षों (खेजड़ी) की प्रचूरता और कृष्ण मृगों के विचरण के कारण लगता है यह मरुभूमि का भाग कभी तपोभूमि भी रहा है|
पूरे भारत में मूल रूप से यहाँ के प्रवासी उद्योगपतियों का वर्चस्व है| भारतीय सेना में भी सर्वाधिक सैनिक इसी क्षेत्र के हैं| सभी युद्धों में सर्वाधिक शहीद हुए सैनिक इसी क्षेत्र के थे|
.
प्रसंगवश ऐसा लिख दिया, अन्यथा पूरा ब्रह्मांड ही अपना घर है, और समस्त सृष्टि अपना परिवार| यह संसार एक पाठशाला की तरह ऐसे ही चलता रहेगा, जहाँ एक ही पाठ निरंतर पढ़ाया जा रहा है| कुछ लोग इसे शीघ्र समझ लेते हैं, कुछ देरी से, और जो इसे नहीं समझते वे समझने के लिए बाध्य कर दिए जाते हैं| वह पाठ है कि "मनुष्य जीवन का एकमात्र उद्देश्य है ईश्वर की प्राप्ति"|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

No comments:

Post a Comment