Thursday 29 July 2021

हम किसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं? कमी हमारी समझ में है, भगवान तो यहीं हैं ---

 हम किसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं? कमी हमारी समझ में है, भगवान तो यहीं हैं ---

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भगवान कोई ऊपर से उतर कर आने वाले व्यक्ति या चीज नहीं हैं। हमें स्वयं के अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) को विसर्जित कर, स्वयं को ही भगवान बनना पड़ेगा। यही उनको पाने का एकमात्र उपाय है। तभी हम उनके साथ एक हो सकते हैं।
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प्राण-तत्व के रूप में वे निरंतर हमारे अस्तित्व में हैं। वे ही हमारे प्राण हैं। "प्राणान्नमो भगवते पुरुषाय तुभ्यम्।" उन्होने ही प्राण रूप से हमारे अंतःकरण में प्रवेश कर हमारी ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों को जीवंत किया है। जब वे स्वयं हमारे समक्ष हैं, तो हमारे लिए अब कोई धर्म-अधर्म, कर्तव्य-अकर्तव्य, पाप-पुण्य, उपदेश, आदेश, सिद्धान्त, मत-पंथ, संप्रदाय, मांग, कामना, आकांक्षा, अपेक्षा, आदि नहीं रहे हैं; सब कुछ उनको ही बापस समर्पित है। सब कुछ उन्हीं का है, और सब कुछ वे ही हैं।
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प्राण-तत्व के रूप में सुषुम्ना नाड़ी में उनके प्रवाह की प्रतिक्रिया स्वरूप हमारी सांसें चल रही हैं। हमारे माध्यम से वे ही, स्वयं को व्यक्त कर रहे हैं।
सहस्त्रार -- भगवान के चरणकमल हैं। सहस्त्रार पर ध्यान उनके चरणकमलों का ध्यान है। सहस्त्रार में स्थिति उनके चरणकमलों में आश्रय है। ब्रह्मरंध्र से परे की अनंतता -- भगवान का विराट स्वरूप है। उस अनंतता से भी परे का ज्योतिषांज्योतिर्मय आलोक -- वे स्वयं हैं। उन के चरणकमलों में हमारा समर्पण पूर्ण हो।
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"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥"
ॐ शांति, शांति, शांति॥"
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ जून २०२१

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