Thursday 29 July 2021

हरेक पुरोहित सनातन धर्म का अभिभावक है ---

 हरेक पुरोहित सनातन धर्म का अभिभावक है ---

हरेक कर्मकांडी पुरोहित सनातन धर्म का अभिभावक है। पुरोहित शंकराचार्यों का प्रतिनिधि है। पुरोहित अपनी नहीं देवी देवताओं की पूजा करता और करवाता है। पुरोहित की आस्था सनातन धर्म ग्रन्थ प्रतिपादित देवी देवता हैं। पुरोहित नामाकरण से लेकर मृत्यु संस्कार पर्यंत आपके साथ जूडा है। आपके हर त्यौहार, खुसी और गम पर जो आपके साथ है,वह आपका पुरोहित है। आपके पास बड़े बड़े मठाधीश , पीठाधीश नहीं पहुँच सकते परंतु दिनरात आपके अभ्युदय के लिए आपके दीर्घायुष्य के लिए,आपकी उन्नति के लिए जो पूजा-पाठ करता है, वह आपका उपेक्षित पुरोहित है। पुरोहित पर दबाव है, पुरोहित समाज सुधार के लिए कृतसंकल्पित है लेकिन धनाढ्यों व तथाकथित उच्च जाति के दवाब के कारण परिवर्तन की आवाज बुलंद नहीं कर सकता, पुरोहित विवश है।
सनातन धर्म की शाश्वत धारा को प्रवाहित कर पूर्वीय दर्शन की सजीवता को हर मानव तक पहुंचाने के लिए पुरोहितों को संगठित होना होगा, प्रशिक्षित भी होना होगा। सनातन धर्म के वैज्ञानिक पक्षों का उजागर करने की क्षमता का विकास करना होगा । पुरोहित निरीह,दरिद्र, भिखारी नहीं, वह सनातन धर्म का उत्तराधिकारी है, वह सनातन धर्म का अभिभावक है। पुरोहितों को शंकराचार्यों व वैदिक सम्प्रदायों के गुरुओं को छोड किसी भी अवैदिक पंथो से गुरु दीक्षा लेने की आवश्यकता नहीं क्योंकि पुरोहित अवैदिक पाखण्डी गुरुओं से स्वतः पूज्य और आदरणीय है।
पुरोहित ऋषि मुनियों की संतान हैं, पुरोहित ऋषि, गोत्र, कुल ,प्रवर का परिचायक होता है । पुरोहित देवी देवताओं का पक्षधर होने से देवद्रोही तमाम ऐरे गैरे नत्थुखैरे गुरुओं से हजारों गुणा श्रेष्ठ है । समस्त तीर्थ यात्राओं का कारक पुरोहित है। बद्री, केदार,अयोध्या, काशी, मथुरा, वृन्दावन, हरिद्वार, रामेश्वरम् सहित समस्त देवी देवताओं की नगरी जाने के लिए पुरोहित ही समाज को प्रेरित करता है।
पुरोहित कौवा से लेकर कुत्ते तक को भोजन करवाने व जीवन देने के लिए समाज को अभिप्रेरित करता है । पुरोहितों के अनगिनत योगदान हैं समाज के लिए परंतु हमारा समाज पुरोहितों का तिरस्कार करता है, अपमानित करता है। तरह तरह के पाखंडी गुरु कम्पनी के दलालों को मंच में रखकर उनकी निंदा करवाता है । अधिकांश गुरुओं के कोपभाजन का प्रथम शिकार पुरोहित ही होता है क्यों ? क्या आप तरह तरह के गुरुओं को अपने पुरोहितों के विरुद्ध बोलने के लिए बुलवाते हैं? वह दुष्ट गुरु कर्मकाण्ड और ब्राह्मणों का क्यों खंडन करता है? वह अपराधी गुरु यह जानता है कि ब्राह्मणों की निन्दा किए विना, ब्राह्मणों को कमजोर किये विना देवद्रोही कृत्य को अंजाम दे नहीं सकता।
पुरोहितों को चाहिए कि वह स्वयं अपने सामाजिक उत्तरदायित्व और अभिभावकत्व को स्वीकार कर गाँव व सहर पर होने वाले सनातन विरोधी कृत्यों पर कार्यवाही करे, सनातन विरोधियों को दंडित करे तथा पथभ्रष्ट लोगों का प्रायश्चित कर पुनः मूलधारा में लाने के लिए प्रयत्न करे। शास्त्रों को प्रमाण मानकर सनातन धर्म की आस्था पर समाज को जोडे। सर्व प्रथम पुरोहित संस्कृत निष्ठ और देव निष्ठ हो। देवी देवता की भक्ति और शाकाहार भोजन ही पुरोहितों की शक्ति है । शक्ति का विस्तार करे। सनातन धर्म राक्षसों का इतिहास तो बताता है लेकिन उनका महिमा मंडन नहीं करता । राक्षसों से भी दुष्ट और क्रूर आतंकियों के आका की पुरोहित अपने मुखारविंद से कभी भी गुणगान न करे,। ऐसा करने पर ब्राह्मणत्व का पतन होगा। पुरोहित समाज का गुरु है, अग्रज है, अभिभावक है। समाज पुरोहितों का आदर करे। पुरोहित निरीह होकर नहीं अभिभावकत्व का अधिकार पूर्ण निर्वहन करे तो विश्व मेऺ सनातनी बिगुल फूंकने के लिए काफ़ी है ।
-विनीत कनकधारा स्वामी स्वदेशानन्द
साभार : माता कनकधारा, कामाख्या पीठ.
२४ जून २०२१

1 comment:

  1. कर्मकांडी ब्राह्मण - हिन्दू धर्म की रीढ़ हैं, उनका सम्मान होना चाहिए। वे सभी धर्माचार्यों के प्रतिनिधि हैं। वे हम से देवी-देवताओं की पूजा करवाते हैं, स्वयं की नहीं। वे जन्म से लेकर मृत्यु तक हरेक संस्कार में हमारे काम आते हैं। उनको दक्षिणा देना हमारा धर्म है। यही तो उनकी आजीविका है। आप किसी डॉक्टर के पास जाते हैं, वह आपसे कम से कम दो-सौ रुपये फीस के लेकर ही बात करेगा, वकील के पास जाते हैं, वह भी कम से कम पाँच-सौ रुपये की फीस लेकर ही आपको कोई सलाह देगा, और एक मजदूर से आप मजदूरी करवाते हैं, वह भी आप से सात-सौ रुपये एक दिन के ले ही लेगा। फिर एक कर्मकांडी ब्राह्मण को यथायोग्य दी गई दक्षिणा कोई भीख नहीं है। किसी भी अनुष्ठान का तब तक कोई फल नहीं मिलता, जब तक उस अनुष्ठान के आचार्य को दक्षिणा नहीं दी जाती। अतः उनकी उपेक्षा न करें, अन्यथा ब्राह्मण वर्ग अपना पौरोहित्य का व्यवसाय ही छोड़ देगा। यही तो धर्मनिरपेक्ष (अधर्मसापेक्ष) लोग चाहते हैं।

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