Saturday, 30 October 2021

जहाँ परमात्मा का परम प्रकाश है, वहाँ अंधकार नहीं रह सकता ---

जहाँ परमात्मा का परम प्रकाश है, वहाँ अंधकार नहीं रह सकता| परमात्मा के प्रकाश का भ्रूमध्य (कूटस्थ) में ध्यान, अनाहत नाद का श्रवण, और अजपाजप (हंसःयोग) इस युग की उच्चतम आध्यात्मिक साधना है, जिसका बोध परमात्मा की परम कृपा से ही होता है| अतः अपने हृदय का सर्वश्रेष्ठ प्रेम परमात्मा को दें| हम परमात्मा के उपकरण बनें, उन्हें अपने माध्यम से प्रवाहित होने दें|
.
जगन्माता ही साधक हैं, हम नहीं| वे स्वयं हमारे सूक्ष्म देह के मेरुदंड की सुषुम्ना नाड़ी के भीतर ब्राह्मी उपनाड़ी में कुंडलिनी महाशक्ति के रूप में विचरण कर रही हैं| चाँदी (रजत) के समान चमकती हुई उनकी आभा से ब्रह्मनाड़ी आलोकित है| उनका ब्रह्मरंध्र के बाहर, परमात्मा की अनंतता से भी परे करोड़ों सूर्यों की ज्योति से भी अधिक ज्योतिर्मय परमशिव से मिलन ही योग की परम सिद्धि और परमगति है|
.
उनके तेज के अंशमात्र को सहन करना भी वैसे ही है जैसे ५ वाट के बल्ब से करोड़ों वोल्ट की विद्युत का प्रवाहित होना| उनके तेज के अंश को भी सहन करने योग्य बनने के लिए हमें अनेक जन्मों तक साधना करनी पड़ती है| परमात्मा की कृपा के बिना उनके तेज को हम सहन नहीं कर सकते| उनका अंशमात्र भी हमें प्राप्त हो जाये तो यह भोगी शरीर तुरंत नष्ट हो जाएगा|
.
सर्वश्रेष्ठ तो यही है कि हम उन्हें प्रेम करें, भक्ति करें, और उन्हें समर्पित हो जाएँ| गीता जैसे ग्रन्थों में पूरा मार्गदर्शन प्राप्त है| आचार्य मधुसूदन सरस्वती, आचार्य शंकर की परंपरा के सन्यासी थे| उन्होने भगवान श्रीकृष्ण को ही परम तत्व बताया है ...
"वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात पीताम्बरादरुणबिम्बफलाधरोष्ठात् |
पूर्णेंदुसुंदरमुखादरविंदनेत्रात कृष्णात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने ||"
अर्थात, पूर्णेन्दु चन्द्रमा के समान जिनका अतुलित सौन्दर्य-माधुर्य है, जिनके कर-पल्लव वंशी-विभूषित हैं, जिनके नेत्र कमल-दलतुल्य हैं ऐसे कृष्णचन्द्र परमानन्द के तुल्य और कोई वस्तु है ही नहीं; सच्चिदानन्दघन आनन्दकन्द परमानन्द श्रीकृष्णस्वरूप से भिन्न कोई तत्त्व है ऐसा में नहीं जानता; तात्पर्य कि श्रीकृष्णस्वरूप ही सर्वोपरि तत्त्व है | अन्ततोगत्वा तात्पर्य यह कि परात्पर परब्रह्म ही श्रीकृष्णस्वरूप में साक्षात् हुए हैं ||
सार की बात :--- "येन-केन प्रकारेण मनः कृष्णे निवेशयेत् |"
जिस किसी भी भावना से प्रेरित हो, भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र से अपना संबंध जोड़ लो; यही वेद वेदांग, उपनिषद्-पुराण आदि सम्पूर्ण सत्-शास्त्रों का एकमात्र उपदेश-आदेश है||
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
३१ अक्तूबर २०२०

No comments:

Post a Comment