Monday 1 January 2018

भारत के पतन के कारण और उन्हें दूर करने के उपाय .....

भारत के पतन के कारण और उन्हें दूर करने के उपाय .....
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हिन्दू समाज और पूरे भारतवर्ष का पतन और बिखराव हुआ, इसका एकमात्र कारण समय के दुष्प्रभाव से षड़रिपु .... काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद व मत्सर्य रूपी अज्ञानता का समाज में वर्चस्व होना था| इसी कारण हमारे में सदगुण विकृतियाँ आईं और हम आलसी, दीर्घसूत्री, स्वार्थी और अदूरदर्शी हो गए| हमारे पतन का अन्य कोई कारण नहीं था| अब समाज में चेतना आ रही है|
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यदि हम अपने जीवन का केंद्रबिंदु परमात्मा को बनाकर अपना हर अच्छा कार्य मन लगाकर पूर्णता से करें तो आगे उत्थान ही उत्थान है, कोई पतन नहीं होगा| कोई निराशा की बात नहीं है, जो असत्य और अन्धकार हमारे चारों ओर फैला है, उसका प्रभाव निश्चित रूप से कम होगा|
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समय समय पर भारत में महान आत्माओं का अवतरण हुआ है जिन्होंने समाज को जागृत किया| भूतकाल में आचार्य चाणक्य के प्रयासों से भारत में सांस्कृतिक और राजनीतिक एकता स्थापित हुई| शताब्दियों तक भारत की ओर बुरी दृष्टी से आँख उठाकर देखने का किसी में साहस नहीं हुआ| समय के दुष्प्रभाव से भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पतन व बिखराव को आचार्य शंकर ने बहुत अधिक दूर किया| समय के प्रभाव से भारत फिर पदाक्रांत हुआ और अभारतीय कुटिल, क्रूर, निर्दय, दुर्दांत असांस्कृतिक राजनीतिक सत्ताएँ भारत में छा गईं| भारत ने कभी उनको स्वीकार नहीं किया, सदा प्रतिकार किया और उनके विरुद्ध संघर्ष जारी रखा| उनके विरुद्ध भारत में अनेकानेक महान वीर पुरुषों, भक्तों व संत-महात्माओं ने जन्म लिया और अपने प्रयासों से भारत की सांस्कृतिक व आध्यात्मिक एकता बनाए रखी| उन के हम सदा कृतज्ञ और आभारी रहेंगे|
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सौभाग्य से आज भी भारत में अनेक ज्ञात-अज्ञात साधू-संत-महात्मा हैं जो भारत की सांस्कृतिक व आध्यात्मिक एकता और भारत की आत्मा की रक्षा के लिए साधना और संघर्ष कर रहे हैं| भारतीयता की रक्षा तभी होगी जब हम अपने निज जीवन में स्वधर्म को समझेंगे और उसका पालन करेंगे| धर्म का पालन ही धर्म की रक्षा करता है, अन्य कोई साधन या मार्ग नहीं है| जो धर्म की रक्षा करेगा, धर्म भी उसकी रक्षा करेगा| इस के लिए हमें अपने निज जीवन में इन षड़रिपुओं ..... काम. क्रोध, लोभ. मोह, मद व मत्सर्य का प्रभाव कम से कम करना होगा, और निज जीवन में ही परमात्मा को भी अवतरित करना होगा|
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सभी को पूर्ण ह्रदय से शुभ कामनाएँ और अहैतुकी प्रेम|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ ||
०२ जनवरी २०१८
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परमात्मा का ध्यान और भक्ति हमारा स्वभाव हो .....
परमात्मा के ध्यान में बिताया गया समय ही सार्थक है बाकी सारा तो मरुभूमि में जल की एक बूँद की तरह निरर्थक है| हम चाहे कितने भी ग्रन्थ पढ़ लें, कितने भी प्रवचन और उपदेश सुन लें, इनसे प्रभु नहीं मिलेंगे| पुस्तकें, प्रवचन और उपदेश सिर्फ प्रेरणा दे सकते हैं, इस से अधिक कुछ भी नहीं| परमात्मा से प्रेम और उनका ध्यान, गहन ध्यान, गहनतर ध्यान, गहनतम ध्यान, और उस ध्यान की निरंतरता ........ बस यही प्रभु तक पहुंचा सकते है|
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ॐ नमः शम्भवाय च, मयोभवाय च, नमः शंकराय च, मयस्कराय च, नमः शिवाय च, शिवतराय च ||
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
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उन सब महान आत्माओं को मैं सादर प्रणाम करता हूँ जो निज जीवन में भगवान की उपासना कर रहे हैं| वे निश्चित रूप से भगवान को प्राप्त करेंगे, आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में| जो अभी साधक हैं वे भविष्य के महान सिद्ध हैं| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

०२ जनवरी २०१८ 

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