Friday, 7 April 2017

ब्रह्मचर्य सबसे बड़ा तप है जो देवों को भी दुर्लभ है .....

ब्रह्मचर्य सबसे बड़ा तप है जो देवों को भी दुर्लभ है .....
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आप सब में साकार परमात्मा को मैं नमन करता हूँ| निम्न पंक्तियाँ सिर्फ आध्यात्मिक साधकों के लिए है, अन्य कृपया क्षमा करें|
निज जीवन में जो भी मनुष्य परमात्मा को उपलब्ध होना चाहते हैं उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन तो करना ही होगा| ईश्वर के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा ही काम-वासना है| मनुष्य की आत्मशक्ति का विकास ब्रह्मचर्य से ही होता है| वासनाओं के चिंतन से मनुष्य की चित्त शक्ति निरंतर क्षीण होती चली जाती है| सात्विक भोजन, कुसंग त्याग, सत्संग और निरंतर परमात्मा का चिंतन इसके लिए आवश्यक है|
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आध्यात्म मार्ग के पथिक को टीवी पर आने वाले सभी धारावाहिक नाटकों (सीरियल्स) को देखना भी बंद करन होगा क्योंकि सभी धारावाहिक नाटक परस्त्री/परपुरुष सम्बन्धों और एक दूसरे के विरुद्ध षड्यंत्रों पर आधारित होते हैं जो समाज में विखंडन और पारिवारिक सम्बन्धों को नष्ट करने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं| इनमें कुछ भी सकारात्मकता नहीं है|
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ऐसे ही अधिकाँश समाचार चैनलें हैं जो विकृत मानसिकता के प्रदर्शन के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है| इन सब के मालिक विदेशी और भारत विरोधी हैं| भारत की अस्मिता हिंदुत्व है और ये सब हिंदुत्व विरोधी हैं| जो समय इन्हें देखने में नष्ट होता है वह परमात्मा के चिंतन में लगाएँ|
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नित्य प्रातः उठते ही संकल्प करें ...... "आज का दिन मेंरे जीवन का सर्वश्रेष्ठ दिन होगा| आज के दिन मेंरे जीवन में परमात्मा के परमप्रेम की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति होगी| मैं परमात्मा का अमृतपुत्र हूँ, मैं परमात्मा के साथ एक हूँ, मैं आध्यात्म के उच्चतम शिखर पर आरूढ़ हूँ, मैं परमशिव हूँ, शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि| ॐ ॐ ॐ ||"
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रक्तबीज और महिषासुर हमारे भीतर अभी भी जीवित हैं, उनकी चुनौती और अट्टहास हम सब को नित्य सुनाई देता है| ये हमारे अवचेतन मन में छिपे हैं और चित्त की वृत्तियों के रूप में निरंतर प्रकट होते हैं| जितना इनका दमन करते हैं, उतना ही इनका विस्तार होता है| हमारे सारे दुःखों, कष्टों, पीड़ाओं, दरिद्रता और दुर्गति के मूल में ये दोनों ही महा असुर हैं| निज प्रयास से इनका नाश नहीं हो सकता| जगन्माता की शक्ति ही इनका विनाश कर सकती है जिस के लिए हमें साधना करनी होगी|
परस्त्री/पुरुष व पराये धन की कामना, अन्याय/अधर्म द्वारा धन पाने की इच्छा, परपीड़ा, अधर्माचरण और मिथ्या अहंकार ही रक्तबीज है|
प्रमाद यानि आलस्य, काम को आगे टालने की प्रवृत्ति और तमोगुण ही महिषासुर है|
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हे माँ भगवती, यह सारी सृष्टि तुम्हारे मन की एक कल्पना, विचार और संकल्प मात्र है| मैं तुम्हें पूर्णतः समर्पित हूँ| मेरी रक्षा करो| भारत के भीतर और बाहर के सभी शत्रुओं का नाश करो| सनातन धर्म की सर्वत्र पुनर्प्रतिष्ठा हो| सब का कल्याण हो| .
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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पुनश्चः :--- जब तक मन में कामुकता का कण मात्र भी है तब तक किसी भी परिस्थिति में ज़रा सी भी आध्यात्मिक प्रगति नहीं हो सकती|

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