जन्माष्टमी की मंगलमय शुभ कामनाएँ --- . >
भगवान के प्रति हमारा समर्पण पूर्ण हो। स्वयं के प्रयासों से हम भगवान को जान भी नहीं सकते, और पा भी नहीं सकते; लेकिन समर्पित होकर उनके साथ एक हो सकते हैं। जैसे जल की एक बूँद, महासागर को न तो जान सकती है, और न ही पा सकती है; लेकिन समर्पित होकर महासागर के साथ एक हो जाती है। तब वह बूँद, बूँद नहीं रहती, स्वयं महासागर बन जाती है। ऐसे ही स्वयं को भगवान में समर्पित कर हम उनके साथ एक हो जाते हैं।
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सम्पूर्ण सृष्टि मुझ में है, और मैं सम्पूर्ण सृष्टि में हूँ। मेरे सिवाय कोई अन्य नहीं है। यह अनन्य भाव ही कैवल्यावस्था और अनन्य-भक्ति है। इस अनन्य भक्ति-भाव से पूर्णतः समर्पित होकर भगवान का ध्यान किया जाता है। हम भगवान से कुछ ले नहीं रहे, बल्कि उनको अपना सर्वस्व दे ही रहे हैं। अपने अन्तःकरण (मन बुद्धि चित्त अहंकार) को उन्हें समर्पित कर उनके सिवाय अन्य कुछ भी न सोचें।
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यह जन्म हमें भगवान की प्राप्ति के लिए ही मिला है, इसे व्यर्थ करना भगवान के प्रति अपराध है। भगवान की चेतना में हम पाप-पुण्य और धर्म-अधर्म से परे हो जाते हैं। सत्यनिष्ठा और परमप्रेम से समर्पित हो जाएँ। माया की शक्ति बड़ी प्रबल है, उसे निज प्रयास से पार पाना असंभव है। बिना भगवान की कृपा के एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। भगवान की भक्ति (परमप्रेम) ही पार लगा सकती है। शरणागति और समर्पण में कोई मांग, कामना, अपेक्षा या आकांक्षा नहीं होती, सिर्फ एक अभीप्सा होती है। निरंतर उनका स्मरण करो। उनकी कृपा से हमारे सब दुःख, कष्ट दूर होंगे। अपनी श्रद्धा पर दृढ़ रहो॥
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"विनिश्चितं वदामि ते न अन्यथा वचांसि मे।
हरिं नरा भजन्ति येऽतिदुस्तरं तरन्ति ते॥"
आप सब महान आत्माओं को नमन ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
ॐ तत्सत् ! ॐ स्वस्ति !
कृपा शंकर
६ सितंबर २०२३
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