विश्व में घटनाक्रम बहुत तेजी से बदल रहा है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की अनेक बहुत अधिक महत्वपूर्ण बातें हैं, जिनका प्रभाव सीधा भारत पर पड़ता है।
लेकिन अब से मैं अपने नये निर्णय के अनुसार सिर्फ आध्यात्म और भक्ति पर ही लिखूंगा, किसी अन्य विषय पर नहीं। यह निर्णय मैंने दो दिनों पूर्व ही लिया था।
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मेरी पूरी आस्था, श्रद्धा और विश्वास, अब अन्य सब ओर से हट कर सिर्फ परमात्मा में ही स्थिर हैं। मुझे सारी प्रेरणा श्रीमद्भगवद्गीता और उपनिषदों से ही मिलती है। क्रियायोग और श्रीविद्या की साधना मेरे माध्यम से होती है। वेदांगों के स्वाध्याय का कभी अवसर नहीं मिला, इसलिए वेदों को समझने की बौद्धिक क्षमता मुझ में नहीं है। वेदों को मैं अंतिम प्रमाण मानता हूँ। मैं पूरी तरह सनातन धर्मावलम्बी आस्तिक हिन्दू ब्राह्मण हूँ।
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मेरी भौतिक आयु ७७+ वर्ष है। किसी से अनावश्यक बात नहीं करता। परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी विषय में अब कोई रुचि नहीं है। परमात्मा की परम कृपा से मुझे पता है कि मुझे क्या करना है, किसी के मार्गदर्शन की मुझे आवश्यकता नहीं है। मेरा बाकी बचा हुआ सारा जीवन परमात्मा को समर्पित है। जो होगा सो देखा जायेगा। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१३ जून २०२४
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