Saturday, 22 February 2025

किसी भी बात को बार बार लिखना उचित नहीं है ----

 किसी भी बात को बार बार लिखना उचित नहीं है ----

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आध्यात्म और साधना के बारे में जितना भी मुझे ज्ञात है वह मैं अनेक बार लिख चुका हूँ। घुमा-फिरा कर उसे ही बार बार लिखना अनुचित है। कोई नई बात सामने आयेगी तो उसे अवश्य लिखूँगा। पुरानी बातें दुबारा लिखने की इच्छा नहीं है।
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एक ही बात है जो नित्य-नवीन, नित्य सचेतन और नित्य अस्तित्व में है, और वह है -- सच्चिदानंद परमात्मा की अनुभूति। ध्यान में हमें सच्चिदानंद की अनुभूति होती है, उसे ही परमात्मा की प्राप्ति कहते हैं। ध्यान में हम परमब्रह्म परमात्मा के साथ एक होते हैं।
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जिससे प्रेरणा और निरंतर परमात्मा की अनुभूति होती रहे, बस उतना ही पढ़ना चाहिए। यदि एक घंटे पढ़ते हैं तो कम से कम आठ घंटे परमात्मा का ध्यान करना चाहिए। ध्यान में कभी भी कोई भी अकेला नहीं होता। सहस्त्रार से ऊपर का भाग खुल जाता है। सारी सृष्टि, सारे ब्रह्मांडों, सारे जड़, चेतन, और सम्पूर्ण अनंतताओं के साथ हम एक हो जाते हैं।
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परमात्मा को अपनी सम्पूर्ण पृथकता के बोध और सम्पूर्ण अस्तित्व का समर्पण कर दें। श्रीमद्भगवद्गीता, उपनिषदों व अन्य प्रेरणादायक ग्रन्थों का स्वाध्याय समय समय पर करते रहें। कर्ताभाव से मुक्त हो जाएँ। मार्गदर्शन की आवश्यकता हो तो किन्हीं ब्रहमनिष्ठ श्रौत्रीय महापुरुष से ही लें। अपने हृदय का सम्पूर्ण प्रेम परमात्मा को समर्पित कर दें, और उन्हीं में रमण करें। जो सुख, शांति और सुरक्षा परमात्मा के नामजप, स्मरण, चिंतन, मनन, निदिध्यासन और ध्यान में है, वह इस सृष्टि में अन्यत्र कहीं भी नहीं है। रात्री को सोने से पूर्व, और प्रातः उठते ही परमात्मा का ध्यान करें। पूरे दिन उन्हें अपनी स्मृति में रखें।
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निश्चित रूप से कल्याण होगा। हम परमात्मा के साथ एक हैं, कहीं कोई भेद नहीं है। आपको मंगलमय शुभ कामनाएँ और नमन !! ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१८ अप्रेल २०२४

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