वासनात्मक चिंतन से -- जीवन में न चाहते हुए भी हमारा व्यवहार राक्षसी हो जाता है। हम असुर/पिशाच बन जाते हैं, और गहरे से गहरे गड्ढों में गिरते रहते हैं। ऐसी परिस्थिति न आने पाये, इसका एक ही उपाय है -- निरंतर परमात्मा का चिंतन, और परमात्मा को समर्पण। अन्य कोई उपाय नहीं है।
मैंने एक-दो बड़े बड़े ज्ञानी पुरुषों को भी जीवन में राक्षस होते हुए देखा है। हमारे विचार ही हमें गिराते हैं और विचार ही हमारा उत्थान करते हैं। जैसा हम सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२० अगस्त २०२४
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