परमात्मा के समक्ष होने पर क्या होता है? ---
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जब हम स्वयं परमात्मा के समक्ष होते हैं, तब सारे उपदेश, आदेश, सिद्धान्त, मत-पंथ, संप्रदाय, मांग, कामना, आकांक्षा, अपेक्षा, धर्म-अधर्म, कर्तव्य-अकर्तव्य, पाप-पुण्य आदि सब तिरोहित हो जाते हैं। हमारा समर्पण पूर्ण प्रेम और सत्यनिष्ठा से हो, अन्य कुछ भी नहीं। आध्यात्म में "भटकाव" बड़ा कष्टदायी है। भगवान सर्वत्र सदैव निरंतर हमारे समक्ष हैं, और क्या चाहिए? सदा उनकी चेतना में निरंतर बने रहो।
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शरणागति और समर्पण में कोई मांग, कामना, अपेक्षा या आकांक्षा नहीं होती। भगवान हैं, इसी समय हैं, हर समय हैं, यहीं पर हैं, सर्वत्र और सर्वदा हमारे साथ एक हैं। वे हमारे प्राण और अस्तित्व हैं। वे कभी हमसे पृथक नहीं हो सकते। कहीं कोई भेद नहीं है। हम अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ रहे हैं। परमात्मा का ध्यान कीजिये, वे स्वयं को हमारे में व्यक्त करेंगे। यही सर्वश्रेष्ठ सेवा है, जो हम इस समय कर सकते हैं।
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निराश होने की आवश्यकता नहीं है। तमोगुण की प्रधानता से हम निराश हो जाते हैं। तमोगुण ही असत्य और अंधकार की शक्ति है। जिस समय जिस गुण की प्रधानता हमारे में होती है, उस समय वैसे ही हमारे विचार बन जाते हैं। तमोगुण के कारण हमें अपने चारों ओर का वातावरण बहुत अधिक अंधकारमय लगता है। लेकिन सत्य कुछ और ही है। यह जन्म हमें आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए मिला है। इसे नष्ट करना परमात्मा के प्रति अपराध है। आत्मज्ञान ही परम धर्म है।
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ॐ सहनाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥ ॐ शांति शांति शांति !!
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ तत्सत् !! हरिः ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ जून २०२४
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