Saturday, 22 February 2025

मैं तो एक सेवक मात्र हूँ, जिसका कार्य अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करना है, और कुछ भी नहीं ---

मैं तो एक सेवक मात्र हूँ, जिसका कार्य अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करना है, और कुछ भी नहीं। मेरा कोई कर्तव्य नहीं है। मुझे कुछ भी नहीं आता। जो मेरे स्वामी करवाएँगे वही मुझसे होगा। जो कुछ भी करना है वह मेरे स्वामी ही करेंगे. मैं तो उनका एक उपकरण हूँ। मेरा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है। मेरे स्वामी स्वयं परमात्मा हैं। मैं उनके साथ एक और उन्हीं का परमप्रेम हूँ। मैं पाप-पुण्य और धर्म-अधर्म से परे हूँ। . धर्म-अधर्म, अच्छे-बुरे, पुण्य-पाप, और शुभ-अशुभ, --- इन सब द्वैतों से परे -- भगवान को समर्पित हो जाना -- ही सबसे बड़ा सार्थक निष्काम कर्मयोग है। किसी भी तरह की आकांक्षा या अपेक्षा नहीं होनी चाहिए।

ॐ ॐ ॐ !!

२२ सितंबर २०२१

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