Tuesday 30 April 2019

भूमा" तत्व का साक्षात्कार .....

भूमा" तत्व का साक्षात्कार .....
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"भूमा" शब्द सामवेद के छान्दोग्य उपनिषद (७/२३/१) में आता है जिसका अर्थ होता है ..... सर्व, विराट, विशाल, अनंत, विभु, और सनातन| "यो वै भूमा तत् सुखं नाल्पे सुखमस्ति"| भूमा तत्व में यानि व्यापकता, विराटता में सुख है, अल्पता में सुख नहीं है| जो भूमा है, व्यापक है वह सुख है| कम में सुख नहीं है| ब्रह्मविद्या के आचार्य भगवान सनत्कुमार से उनके प्रिय शिष्य देवर्षि नारद ने पूछा ... " सुखं भगवो विजिज्ञास इति|" जिसका उत्तर भगवान् श्री सनत्कुमार जी का प्रसिद्ध वाक्य है ..... " यो वै भूमा तत् सुखं नाल्पे सुखमस्ति|"
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कामायनी महाकाव्य की इन पंक्तियों में कवि जयशंकर प्रसाद ने भी "भूमा" शब्द का प्रयोग किया है, जिसका अर्थ बड़ा दार्शनिक है .....
"जिसे तुम समझे हो अभिशाप, जगत की ज्वालाओं का मूल,
ईश का वह रहस्य वरदान, कभी मत इसको जाओ भूल |
विषमता की पीडा से व्यक्त हो रहा स्पंदित विश्व महान,
यही दुख-सुख विकास का सत्य यही "भूमा" का मधुमय दान |"
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भूमा तत्व की अनुभूति बहुत गहरे ध्यान में सभी साधकों को होती है| बहुत गहरे ध्यान में साधक पाता है कि सब सीमाओं को लांघ कर उसकी चेतना सारे ब्रह्मांड की अनंतता में विस्तृत हो गयी है, और वह समष्टि यानि समस्त सृष्टि के साथ एक है| परमात्मा की उस अनंतता के साथ एक होना "भूमा" है जो साधना की पूर्णता भी है| मनुष्य का शरीर एक सीमा के भीतर है अर्थात् भूमि है| इस सीमित शरीर का जब विराट से सम्बन्ध होता है तो यह 'भूमा' है|
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अजपा-जप में हम भूमा तत्व का ही ध्यान करते हैं| जो योगमार्ग के ध्यान साधक हैं, उन्हें पहली दीक्षा अजपा-जप की दी जाती है| सिद्ध गुरु के मार्गदर्शन में साधक भ्रूमध्य में ज्योतिर्मय ब्रह्म के कूटस्थ सूर्यमंडल का ध्यान करते हैं, जो सर्वव्यापक अनंत है| फिर हर सांस के साथ "हं" और "सः" बीजमंत्रों के साथ उस अनंतता यानि "भूमा" का ही ध्यान करते हैं|
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ब्रह्मविद्या के आचार्य भगवान सनत्कुमार, भक्ति सूत्रों के आचार्य देवर्षि नारद, और योगेश्वर भगवान वासुदेव श्रीकृष्ण को नमन ! इन सब आचार्यों की कृपा मुझ अकिंचन पर निरंतर बनी रहे| ॐ श्री गुरवे नमः || ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ अप्रेल २०१९

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