Tuesday 30 April 2019

भगवान अपने भक्तों की रक्षा देवताओं से भी करते हैं .....

भगवान अपने भक्तों की रक्षा देवताओं से भी करते हैं .....
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सबसे बड़ी चीज भगवान की भक्ति है| जहाँ भगवान की भक्ति है वहाँ भगवान स्वयं भक्त की रक्षा करते हैं| जहां सूर्य का प्रकाश है वहाँ कोई अन्धकार नहीं रह सकता| असुर ही नहीं, देवता भी भगवान की भक्ति में बाधा डालते हैं| रामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड में एक प्रसंग .... जनक-वशिष्ठादि संवाद, इंद्र की चिंता, सरस्वती का इंद्र को समझाने का आता है| देवराज इंद्र और अन्य देवता लोग भरत जी के हृदय में भगवान की भक्ति देखकर निराश हो जाते हैं| उन्होंने एक षडयंत्र रचा और भगवती सरस्वती से भरत की बुद्धि फेरने की प्रार्थना की| देवताओं को मुर्ख जानकर भगवती सरस्वती ने उन्हें डांट दिया और बापस ब्रह्मलोक चली गईं|
"बिबुध बिनय सुनि देबि सयानी| बोली सुर स्वारथ जड़ जानी||
मो सन कहहु भरत मति फेरू| लोचन सहस न सूझ सुमेरू||"
"बिधि हरि हर माया बड़ि भारी| सोउ न भरत मति सकइ निहारी||
सो मति मोहि कहत करु भोरी| चंदिनि कर कि चंडकर चोरी||"
"भरत हृदयँ सिय राम निवासू| तहँ कि तिमिर जहँ तरनि प्रकासू||
अस कहि सारद गइ बिधि लोका| बिबुध बिकल निसि मानहुँ कोका||"
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भगवती सरस्वती जी के कथन का सार है कि .... भरतजी के हृदय में श्रीसीतारामजी का निवास है| जहाँ सूर्य का प्रकाश है, वहाँ कहीं अँधेरा रह सकता है?
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भगवान अपने भक्तों की रक्षा देवताओं से भी करते हैं|

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