Tuesday 30 April 2019

आनंद .....

आनंद .....
-------
ध्यान में प्राप्त आनंद की अनुभूति हमें परमात्मा का गहनतम बोध कराती है| इसी लिए हिमालय की गुफाओं में और वनों के एकांत में योगी संत-महात्मा ध्यानमग्न रहते हैं| उन्हें देह की चेतना नहीं रहती अतः भगवान ही उनके देहरूपी वाहन की रक्षा करते हैं| वे परमात्मा की अनंतता, सर्वव्यापकता और पूर्णता का ध्यान करते करते स्वयं भी अनंत, सर्वव्यापक और पूर्ण हो जाते हैं|
.
यह भौतिक जगत अणु-परमाणुओं से निर्मित है| अणु-परमाणु एक ऊर्जा से निर्मित हैं, और वह ऊर्जा एक विचार है| सार रूप में सारी सृष्टि ही परमात्मा के मन का एक विचार है| सारी सृष्टि जिस तत्व से बनी है, उसी तत्व से आपस में जुडी हुई भी है| उस तत्व को जानकर यानि उस से जुड़ कर ही हम सृष्टि के रहस्यों को जान सकते हैं और परमात्मा को भी समझ कर परमात्मा के साथ एक हो सकते हैं| वह तत्व "आनंद" (Bliss) है जो हमें समष्टि से यानी परमात्मा से जोड़ता है| उस आनंदमय स्थिति को हम प्राप्त करें|
.
चुम्बकत्व की, गुरुत्वाकर्षण की, और अणुओं की शक्ति तो एक सीमित क्षेत्र में होती है, पर उस से भी सूक्ष्म और सर्वव्यापक, एक और शक्ति भी होती है जो सारे ब्रह्मांड का निर्माण, पालन और विध्वंश करती है| उस शक्ति से जुड़कर ही हम परमात्मा का बोध करते करते परमात्मा के साथ एक हो जाते हैं| वह शक्ति "आनंद" है| वह शक्ति ही हमें अपने स्वयं का बोध कराती है|
.
ध्यान में प्राप्त आनंद ही है जो हमें पारब्रह्म यानि परमात्मा से जोड़कर एक रखता है| यह आनंद ही हमें पूर्णता प्रदान करता है|
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदच्यते| पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||"
.
परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब को प्रणाम !
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ अप्रेल २०१९

No comments:

Post a Comment