Tuesday 30 April 2019

क्या स्वयं से पृथक कोई अस्तित्व है?

क्या स्वयं से पृथक कोई अस्तित्व है? क्या स्वयं से पृथक कोई परमात्मा, भगवान या ईश्वर है?
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इस प्रश्न का उत्तर गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में दिया है .....
"सोइ जानइ जेहि देहु जनाई | जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई ||"
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महाभारत में यक्षप्रश्नों के उत्तर में महाराज युधिष्ठिर एक स्थान पर कहते हैं ...
"श्रुतिर्विभिन्ना स्मृतयो विभिन्नाः नैको मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम् |
धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः सः पन्थाः ||"
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इन से अधिक अच्छे आध्यात्मिक उत्तर कोई नहीं हो सकते| बाकी सब की अपनी अपनी निजी अनुभूतियाँ हैं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर .
२८ अप्रेल २०१९

1 comment:

  1. किसी भी वस्तु को देखने के लिए कुछ तो दूरी होनी चाहिए, अन्यथा नहीं देख पायेंगे| भगवान भी निकटतम से अधिक निकट और प्रियतम से भी अधिक प्रिय हैं| उनके और हमारे मध्य कोई भेद है ही नहीं| वे इसी समय यहीं पर हमारे अंतर में, हमारे चैतन्य में हैं| उन्हें जानने का एक ही तरीका है और वह है ..."परमप्रेम"| अन्य कोई उपाय नहीं है|
    "मिले न रघुपति बिन अनुरागा, किये जोग जप ताप विरागा "

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