Tuesday 30 April 2019

श्रीलंका के बौद्ध अब म्यांमार के बौद्धों की तरह ही हिंसक हो गए हैं....

श्रीलंका के बौद्ध अब म्यांमार के बौद्धों की तरह ही हिंसक हो गए हैं....
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पूरे विश्व के बौद्धों में अब अहिंसा लुप्त हो गयी है, अब तो वे आत्मरक्षार्थ हिंसा को ही अपनाते हैं| भूतकाल में जहाँ जहाँ अहिंसा थी, वहाँ के अहिंसक बौद्ध, विदेशी आक्रान्ताओं की तलवार की धार का सामना नहीं कर पाए| वे या तो मार डाले गए या मतांतरित हो गए| एक समय पूरा मध्य-एशिया महायान बौद्ध मतावलंबी था जो तुर्किस्तान तक फैला हुआ था, पर अब तो वहाँ बौद्धमत के अवशेष ही मिलते हैं| समय के साथ बौद्धों ने अब अहिंसा छोड़ दी है और हिंसा का मार्ग अपना लिया है|
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श्रीलंका के बौद्ध, हीनयान शाखा के हैं जो ब्रह्मदेश (बर्मा/म्यांमार), श्याम (थाईलैंड), चंपा (कम्बोडिया), अन्नम (विएतनाम) व सुमात्रा (इंडोनेशिया) में फ़ैली| बौद्धधर्म की दोनों शाखाएँ .... हीनयान और महायान, श्रीलंका के अनुराधापुर से ही प्रचलित हुईं| महायान शाखा ... भारत, त्रिविष्टप (तिब्बत), हरिवर्ष (चीन), कोरिया, मंचूरिया, मंगोलिया व मध्य एशिया तक गयी| 
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शाक्यमुनि गौतम बुद्ध के उपदेश पाँच सौ वर्षों तक लिखे नहीं गए थे| हर एक सौ वर्ष के पश्चात उनके अनुयायियों की एक सभा होती थी जिसमें उनके उपदेशों की चर्चा होती थी| पाँचवीं और अंतिम सभा श्रीलंका के अनुराधापुर नामक स्थान पर हुई, जहाँ हुई चर्चाओं के सार को पाली भाषा में लिपिबद्ध किया गया| जिन्होनें उस समय लिपिबद्ध हुए उन उपदेशों को स्वीकार किया वे हीनयान कहलाये और अन्य महायान हुए|
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तिब्बत में फैला बौद्धमत वज्रयान कहलाया| तिब्बत में भगवती छिन्नमस्ता देवी के उपासक बहुत थे जो तंत्र-मन्त्र में अत्यधिक आस्था रखते थे| छिन्नमस्ता देवी का निवास मणिपुर चक्र में है, और वे सुषुम्ना की उपनाड़ी वज्रा में विचरण करती हैं| उनका बीजमन्त्र 'हुम्' है| वहाँ छिन्नमस्ता की साधना और बौद्धमत मिलजुल कर विकृत हुए और एक नया ही रूप सामने आया जो वज्रयान कहलाया| उन के मन्त्र .... "ॐ मणिपद्मे हुम्" का अर्थ है ... मणिपुर पद्म (कमल) में स्थित हुम् (छिन्नमस्ता) को नमन| ॐ का अर्थ यहाँ बताने की आवश्यकता नहीं है|
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हरिवर्ष (चीन) में बौद्ध मत सन ००६७ ई.में कश्यप मातंग और धर्मारण्य नाम के दो ब्राह्मणों ने फैलाया| जापान में बौद्धमत 'झेन' (Zen) कहलाता है| संस्कृत का एक शब्द 'ध्यान' है जो अपभ्रंस होकर चीन में 'चान' या 'चेन' हो गया, और जापान तक पहुँचते पहुँचते 'झेन' हो गया| इस झेन बौद्धमत को बोधिधर्म नाम के एक भारतीय धर्मंप्रचारक ने फैलाया| बोधिधर्म को कुछ इतिहासकार ब्राह्मण बताते हैं और कुछ क्षत्रिय बताते हैं| जो भी हो, ईसा की छठी शताब्दी में बोधिधर्म भारत से चीन गए और वहां के हुनान प्रांत के प्रसिद्ध शाओलिन मंदिर में कुछ समय तक रहे| वहाँ से वे जापान गए और ध्यान साधना पर आधारित झेन बौद्धमत को फैलाया जो शताब्दियों तक वहाँ का राजधर्म रहा| कोरिया में बौद्ध मत को 'शाक्यमुनि' ही कहते हैं|
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इस लेख को लिखने का उद्देश्य यह बताना ही है कि हिंसा का प्रतिकार हिंसा से ही हो सकता है, अहिंसा से नहीं| धर्म की रक्षा के लिए हिंसा भी आवश्यक है| पूरा मध्य एशिया बौद्ध था जहाँ लोगों ने या तो अपना सिर कटा लिया, या इस्लाम कबूल कर लिया, वे अपने अहिंसा धर्म के कारण इस्लामी तलवार का प्रतिकार नहीं कर सके| भारत के नालंदा विश्वविद्यालय में भी यही हुआ, जहाँ बख्तियार खिलजी ने तीन-चार सौ घुड़सवारों की सेना के साथ तीन हज़ार आचार्यों और दस हज़ार विद्यार्थियों के सिर काट कर वहां के लाखों ग्रन्थ जला दिए| काश, वे विद्यार्थी व आचार्य कुछ प्रतिकार कर पाते !
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आप सब को सादर नमन !
कृपा शंकर 
२३ अप्रेल २०१९

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