Tuesday 30 April 2019

हम मन के गुलाम क्यों हैं? .....

हम मन के गुलाम क्यों हैं? .....
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यह एक बड़ी दुःखद स्थिति है कि हम मन के गुलाम हैं| वास्तव में मन ही हमारा गुलाम होना चाहिए| गीता में भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार जब तक हमारे में राग-द्वेष हैं, तभी तक हम मन के गुलाम हैं, राग-द्वेष से मुक्त होते ही यानि वीतराग होते ही हम इस गुलामी से मुक्त हो जाते हैं| भगवान कहते हैं....
"इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ| तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ||३:३४||
अर्थात् इन्द्रियइन्द्रिय (प्रत्येक इन्द्रिय) के विषय के प्रति (मन में) रागद्वेष रहते हैं मनुष्य को चाहिये कि वह उन दोनों के वश में न हो क्योंकि वे इसके (मनुष्य के) शत्रु हैं||
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जैन धर्म का तो मूल उद्देश्य ही आत्म साधना द्वारा राग-द्वेष को नष्ट कर वीतरागता को प्राप्त करना है|
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गीता के अनुसार वीतराग व्यक्ति ही स्थितप्रज्ञ और निःस्पृह है| भगवान कहते हैं ...
"दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः| वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते||२:५६||
अर्थात् दुःख में जिसका मन उद्विग्न नहीं होता, सुख में जिसकी स्पृहा निवृत्त हो गयी है, जिसके मन से राग, भय और क्रोध नष्ट हो गये हैं, वह मुनि स्थितप्रज्ञ कहलाता है||
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दुःखों (आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक; जिन्हें दैहिक, भौतिक और दैविक भी कह सकते हैं) के प्राप्त होने से जिनका मन उद्विग्न यानि क्षुभित नहीं होता उनको अनुद्विग्नमना कहा गया है| सुखों की प्राप्ति में जिन की स्पृहा यानि तृष्णा नष्ट हो गयी है, उन्हें विगतस्पृह कहां गया है| जो राग-द्वेष, भय, और क्रोध से मुक्त हैं, उन्हें स्थितप्रज्ञ मुनि कहा गया है|
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ऐसे स्थितप्रज्ञ और निःस्पृह व्यक्ति ही मन के गुलाम नहीं होते, मन ही उनका गुलाम होता है|
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अब प्रश्न है कि हम स्थितप्रज्ञ कैसे हों ? इसके लिए किन्हीं तपस्वी, सिद्ध, श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ महात्मा के मार्गदर्शन में साधना करनी चाहिए| सिर्फ संकल्प करने या मनमर्जी से चलने पर सिद्धि नहीं मिलेगी|
योगसुत्रों में कहा गया है .... 'वीतराग विषयं वा चित्तम्'| किसी वीतराग व्यक्ति का निरंतर चिंतन करने से भी वीतरागता आ जाती है| बड़े बड़े संत-महात्मा योगी लोग कठोर साधना द्वारा प्राण-तत्व की चंचलता को शांत कर मन को वश में कर लेते हैं| जो प्रखर भक्त हैं वे निरंतर अपने इष्ट का चिंतन करते करते वीतराग हो जाते हैं| कैसे भी हों, पर इस मन की गुलामी से मुक्ति अति आवश्यक है|
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आप सब मनीषियों को सप्रेम नमन | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
१५ अप्रेल २०१९
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पुनश्चः :--- हमारे अवचेतन मन में सारी आसुरी वृत्तियाँ छिपी हुई हैं, जिन पर विजय पाने के लिए अवचेतन मन को वश में करना पड़ेगा| इसके लिए ध्यान साधना अति आवश्यक है|
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पुनश्चः :--- भगवान कहते हैं .....
"असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं| अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते||६:३५||
अर्थात् हे महाबाहो, निसन्देह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है परन्तु हे कुन्तीपुत्र उसे अभ्यास और वैराग्य के द्वारा वश में किया जा सकता है||

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