Tuesday 30 April 2019

आत्मानुभूति ......

आत्मानुभूति ......
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यह एक स्वभाविक प्रक्रिया है जिसके लिए मुझे कोई प्रयास नहीं करना पड़ता| निश्चित रूप से यह कोई पूर्व जन्म की साधना का फल है, क्योंकि इस जन्म में तो मुझे नहीं लगता कि मैंने कोई ऐसा कार्य किया है जिस से भगवान प्रसन्न हों| जीवन में कई बार प्रयास किया विधिवत रूप से सन्यस्त होने का, पर मेरे प्रारब्ध में ऐसा कोई योग नहीं था| 
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जब भी एकांत में हर तरह के कोलाहल से दूर होकर बैठता हूँ तब दृष्टी स्वतः ही भ्रूमध्य में जाकर टिक जाती है, और चेतना स्वाभाविक रूप से आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य उत्तरा सुषुम्ना में स्थिर हो जाती है| धीरे-धीरे एक विस्तार की अनुभूति होती है कि मैं यह देह नहीं, सम्पूर्ण सृष्टि और उस से परे की अनंतता हूँ| फिर समुद्र की गर्जना की तरह की एक ध्वनि सुननी आरम्भ हो जाती है| उस ध्वनि को सुनने से अधिक आनंद अन्यत्र कहीं भी नहीं मिलता| लगता है कि उस ध्वनि को ही सुनता रहूँ और सारा जीवन उसी को सुनते सुनते ही व्यतीत हो जाए| इस के लिए मुझे कोई प्रयास नहीं करना पड़ता, यह बहुत ही स्वभाविक है| वह अनंतता, वह ध्वनि, उसके साथ दिखाई देने वाला प्रकाश, और आनंद की अनुभूति ही को मैं "परमशिव" कहता हूँ| वे ही मेरे इष्टदेव हैं, जो मुझ से पृथक नहीं हैं|
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और भी कई दिव्य अनुभूतियाँ हैं जिन्हें व्यक्त करने की आतंरिक अनुमति मुझे नहीं है| वे मेरे निजी रहस्य हैं जो रहस्य ही रहेंगे, व मेरे साथ ही चले जायेंगे| सबसे बड़ी आनंद की अनुभूति है.... "प्रेम", उस अनंतता से "प्रेम|"| मैं स्वयं ही प्रेममय हूँ| यह प्रेम ही अब तक की एकमात्र उपलब्धि है मेरे पास, अन्य कुछ भी मेरे पास नहीं है|
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आप सब दिव्यात्माओं को प्रेममय नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२९ अप्रेल २०१९

1 comment:

  1. वर्तमान प्रतिकूल वातावरण को अनुकूल बनाने के लिए हमारे भौतिक प्रयास ही पर्याप्त नहीं हैं, सूक्ष्म आध्यात्मिक प्रयासों की भी आवश्यकता है. हमारे चारो ओर जो आसुरी भाव व्याप्त है, उस से मुक्त होने के लिए नित्य नियमित ध्यान साधना करनी चाहिये. ध्यान साधना भी एक यज्ञ है जिसमें हम अपने अहं की आहुति परमात्मा को देते हैं.
    ॐ ॐ ॐ !

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