दरिद्रता सबसे बड़ा पाप है .....
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सनातन धर्म की मुख्य शिक्षा है कि जीवन का उद्देश्य परमात्मा की प्राप्ति यानी आत्म-साक्षात्कार है| परमात्मा की निरंतर सर्वत्र उपस्थिति के बोध का अभ्यास ही ध्यान साधना है| सनातन धर्म हमें भगवान से अहैतुकी परम प्रेम (Unconditional integral love) करना सिखाता है| जो भी मत हमें भयभीत होना यानि डरना सिखाता है या स्वयं को पापी होना बताता है, वह गलत है| हम परमात्मा के अमृतपुत्र और उनके अंश हैं| दरिद्रता सबसे बड़ा पाप है जो मानसिक अयोग्यता से उत्पन्न होता है| दरिद्रता दो प्रकार की होती है ..... एक तो भौतिक दरिद्रता और दूसरी आध्यात्मिक दरिद्रता| दोनों ही हमारे बुरे कर्मों का फल है| अपना पूरा प्रयास कर के इन से हम मुक्त हों, पर हमारे प्रयास धर्मसम्मत हों| भौतिक समृद्धि ..... आध्यात्मिक समृद्धि का आधार है| भारत आध्यात्मिक रूप से समृद्ध था क्योंकि वह भौतिक रूप से भी समृद्ध था| गरीबी यानि दरिद्रता कोई आदर्श नहीं है, यह एक पाप है|
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हमें अपने विचारों पर और वाणी पर सजगता पूर्वक नियंत्रण रखना चाहिए| अधोगामी विचार पतन के कारण होते हैं| अनियंत्रित शब्द स्वयं की आलोचना, निंदा व अपमान का कारण बनते हैं| परमात्मा के किसी पवित्र मन्त्र का निरंतर जाप हमारी रक्षा करता है|
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वर्तमान काल की प्रतिकूल परिस्थितियों में हमें विचलित नहीं होना चाहिए| हमें धैर्यपूर्वक अपना शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आर्थिक और आध्यात्मिक बल निरंतर बढाते रहना चाहिए| हमारी आध्यात्मिक शक्ति निश्चित रूप से हम सब की रक्षा करेगी|
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आप सब को प्रणाम ! आप परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति हैं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ अप्रेल २०१९
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सनातन धर्म की मुख्य शिक्षा है कि जीवन का उद्देश्य परमात्मा की प्राप्ति यानी आत्म-साक्षात्कार है| परमात्मा की निरंतर सर्वत्र उपस्थिति के बोध का अभ्यास ही ध्यान साधना है| सनातन धर्म हमें भगवान से अहैतुकी परम प्रेम (Unconditional integral love) करना सिखाता है| जो भी मत हमें भयभीत होना यानि डरना सिखाता है या स्वयं को पापी होना बताता है, वह गलत है| हम परमात्मा के अमृतपुत्र और उनके अंश हैं| दरिद्रता सबसे बड़ा पाप है जो मानसिक अयोग्यता से उत्पन्न होता है| दरिद्रता दो प्रकार की होती है ..... एक तो भौतिक दरिद्रता और दूसरी आध्यात्मिक दरिद्रता| दोनों ही हमारे बुरे कर्मों का फल है| अपना पूरा प्रयास कर के इन से हम मुक्त हों, पर हमारे प्रयास धर्मसम्मत हों| भौतिक समृद्धि ..... आध्यात्मिक समृद्धि का आधार है| भारत आध्यात्मिक रूप से समृद्ध था क्योंकि वह भौतिक रूप से भी समृद्ध था| गरीबी यानि दरिद्रता कोई आदर्श नहीं है, यह एक पाप है|
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हमें अपने विचारों पर और वाणी पर सजगता पूर्वक नियंत्रण रखना चाहिए| अधोगामी विचार पतन के कारण होते हैं| अनियंत्रित शब्द स्वयं की आलोचना, निंदा व अपमान का कारण बनते हैं| परमात्मा के किसी पवित्र मन्त्र का निरंतर जाप हमारी रक्षा करता है|
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वर्तमान काल की प्रतिकूल परिस्थितियों में हमें विचलित नहीं होना चाहिए| हमें धैर्यपूर्वक अपना शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आर्थिक और आध्यात्मिक बल निरंतर बढाते रहना चाहिए| हमारी आध्यात्मिक शक्ति निश्चित रूप से हम सब की रक्षा करेगी|
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आप सब को प्रणाम ! आप परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति हैं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ अप्रेल २०१९
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