हमारा वर्तमान जीवन अनंत कालखंड में एक छोटा सा पड़ाव मात्र है| इस अल्पकाल की तुच्छ चेतना से ऊपर उठकर हम प्रभु की अनंतता, प्रेम और सर्वव्यापकता बन सकें, काल का कोई बंधन न रहे| भगवान का ध्यान ही वास्तविक और एकमात्र सत्संग है| बुरे और नकारात्मक विचार हमारे सबसे बड़े शत्रु हैं| भगवान की चेतना ही हमारा वास्तविक घर है|
श्रीअरविन्द के शब्दों में -----
"उस कार्य को करने के लिए ही हमने जन्म किया ग्रहण, कि जगत को उठा प्रभु तक ले जाएँ, उस शाश्वत प्रकाश में पहुँचाएँ, और प्रभु को उतार जगत पर ले आएँ, इसलिए हम भू पर आये कि इस पार्थिव जीवन को दिव्य जीवन में कर दें रुपान्तरित |"
"उस कार्य को करने के लिए ही हमने जन्म किया ग्रहण, कि जगत को उठा प्रभु तक ले जाएँ, उस शाश्वत प्रकाश में पहुँचाएँ, और प्रभु को उतार जगत पर ले आएँ, इसलिए हम भू पर आये कि इस पार्थिव जीवन को दिव्य जीवन में कर दें रुपान्तरित |"
"जहाँ है श्रद्धा वहाँ है प्रेम, जहाँ है प्रेम वहीं है शांति| जहाँ होती है शांति, वहीँ विराजते हैं ईश्वर| और जहाँ विराजते हैं ईश्वर, वहाँ किसी की आवश्यकता ही नहीं|"
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भगवान कहते हैं .....
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति | तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ||"
श्रुति भगवती भी कहती है ..... "एकम् सत् विप्राः बहुधा वदन्ति |"
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सभी में हम परमात्मा का दर्शन करें| साथ साथ आतताइयों से स्वयं की रक्षा और राष्ट्ररक्षा के लिए एकजुट होकर प्रतिरोध और युद्ध करने के धर्म का पालन भी करें| अपना हर कार्य और अपनी हर सोच निज विवेक के प्रकाश में हो| जिस भी परिस्थिति में हम हैं, उस परिस्थिति में सर्वश्रेष्ठ कार्य हम क्या कर सकते हैं, वह हम ईश्वर प्रदत्त निज विवेक से निर्णय लेकर ही करें| जहाँ संशय हो वहाँ भगवान से मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करें| हम मिल जुल कर प्रेम से रहेंगे तो सुखी रहेंगे | श्रुति भगवती कहती है ....
"संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् | देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते ||"
अर्थात् हम सब एक साथ चलें, एक साथ बोले , हमारे मन एक हो |
प्रााचीन समय में देवताओं का ऐसा आचरण रहा इसी कारण वे वंदनीय हैं|
जय जननी जय भारत, जय श्री राम |
कृपा शंकर
१८ मार्च २०१९
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भगवान कहते हैं .....
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति | तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ||"
श्रुति भगवती भी कहती है ..... "एकम् सत् विप्राः बहुधा वदन्ति |"
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सभी में हम परमात्मा का दर्शन करें| साथ साथ आतताइयों से स्वयं की रक्षा और राष्ट्ररक्षा के लिए एकजुट होकर प्रतिरोध और युद्ध करने के धर्म का पालन भी करें| अपना हर कार्य और अपनी हर सोच निज विवेक के प्रकाश में हो| जिस भी परिस्थिति में हम हैं, उस परिस्थिति में सर्वश्रेष्ठ कार्य हम क्या कर सकते हैं, वह हम ईश्वर प्रदत्त निज विवेक से निर्णय लेकर ही करें| जहाँ संशय हो वहाँ भगवान से मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करें| हम मिल जुल कर प्रेम से रहेंगे तो सुखी रहेंगे | श्रुति भगवती कहती है ....
"संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् | देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते ||"
अर्थात् हम सब एक साथ चलें, एक साथ बोले , हमारे मन एक हो |
प्रााचीन समय में देवताओं का ऐसा आचरण रहा इसी कारण वे वंदनीय हैं|
जय जननी जय भारत, जय श्री राम |
कृपा शंकर
१८ मार्च २०१९
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