Tuesday 19 March 2019

हमारी हर साँस ही "ब्रह्मसूत्र" है .....

हमारी हर साँस ही "ब्रह्मसूत्र" है .....

भ्रूमध्य में जब अवधान रहता है तब अनुभूति होती है कि हर कार्य मैं नहीं, बल्कि परमात्मा ही कर रहे हैं| यह शरीर जो साँसें लेता है, वह भी परमात्मा ही ले रहे हैं| पूरी सृष्टि और स्वयं परमात्मा ही इस देह के माध्यम से सांस ले रहे हैं| हर सांस में प्रभु को प्रेम करो| हर सांस द्वारा स्वयं को उन्हें समर्पित करने का भाव रखो| यह सांस ही वह सूत्र है जो हमें ब्रह्म से जोड़ रहा है, अतः यह सांस ही ब्रह्मसूत्र है|
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वैसे उपनिषद्, भगवदगीता एवं ब्रह्मसूत्र..... इन तीनों को प्रस्थान-त्रयी कहा जाता है| इसमें उपनिषदों को श्रुति प्रस्थान, गीता को स्मृति प्रस्थान और ब्रह्मसूत्रों को न्याय प्रस्थान कहते हैं| ब्रह्म सूत्रों को न्याय प्रस्थान कहने का अर्थ है कि ये वेदान्त को पूर्णतः तर्कपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करता है|
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एक साधक/उपासक के नाते मेरे लिए हर साँस ही ब्रह्मसूत्र है क्योंकि वह मुझे परमात्मा का बोध कराती है| हर सांस के साथ साथ सुषुम्ना में जो प्राण-तत्व बह रहा है, वह मुझे निरंतर परमात्मा की ओर धकेल रहा है| उस प्राण-तत्व के साथ किया गया क्रिया-योग ही मेरे लिए "वेदपाठ" है|
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गुरु महाराज का मुझ में विलय हो गया है, वे मुझ से पृथक नहीं है| सहस्त्रार की ज्योति ही गुरु पद है, और अनंत महाकाश के ज्योतिर्मय सूर्यमंडल में स्थित परम-पुरुष परमशिव ही मेरे उपास्य देव और मेरा स्वयं का अस्तित्व भी है| वे ही मेरे सर्वस्व हैं, मेरा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है| वह कूटस्थ सूर्यमंडल ही मेरा सर्वस्व है|
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कई ज्ञान की बाते हैं जिन्हें लिखने का मुझे आदेश नहीं है| कभी आदेश होगा तो फिर लिखूँगा|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ मार्च २०१९

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