Friday, 6 May 2022

अवशिष्ट जीवन उन्हीं के ध्यान, चिंतन, और स्मरण में बीत जाये ---

जिसका हम ध्यान करते हैं, वही हम बन जाते हैं। परमात्मा हमें प्राप्त नहीं होते, बल्कि समर्पण के द्वारा हम स्वयं ही परमात्मा को प्राप्त होते हैं। कुछ पाने का लालच -- माया का एक बहुत बड़ा अस्त्र है। जीवन का सार कुछ होने में है, न कि कुछ पाने में। जब सब कुछ परमात्मा ही हैं, तो प्राप्त करने को बचा ही क्या है? आत्मा की एक अभीप्सा होती है, उसे परमात्मा का विरह एक क्षण के लिए भी स्वीकार्य नहीं है। इसी को परमप्रेम या भक्ति कहते हैं।

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कल रात्री के ध्यान में वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण ने एक बात तो स्पष्ट बता दी कि तुम्हारे जीवन में कुछ भी अच्छा नहीं है। हर कदम पर लाखों कमियाँ ही कमियाँ हैं। एक ही अच्छाई है कि तुम्हें मुझसे प्रेम है, और कुछ भी अच्छा नहीं है। इसी प्रेम ने तुम्हारी हर बुराई को ढक रखा है। जब भगवान स्वयं यह बात कह रहे हैं तो माननी ही पड़ेगी। अपनी हर बुराई और अच्छाई -- सब कुछ उन्हें बापस लौटा रहा हूँ। इस पाप की गठरी को कब तक ढोता रहूँगा? अवशिष्ट जीवन उन्हीं के ध्यान, चिंतन, और स्मरण में बीत जाये,
और कुछ भी नहीं चाहिए। ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२३ अप्रेल २०२२


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