चरणों की धूल में करूँ स्नान
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जीवन धन्य हो गया, चरणों की धूल में स्नान जो कर लिया। इसका पता ही नहीं था। आज ही पता चला कि ये तो साक्षात् भगवान विष्णु के चरण-कमल हैं, जिनकी धूल में मैं स्नान कर रहा हूँ। अब कहीं किसी तीर्थ में जाने की आवश्यकता नहीं है। सारे तीर्थ यहीं आ गए हैं। उनके चरणों की धूल में निरंतर स्नान, और उनके चरणों के संचलन की निरंतर आ रही ध्वनि को सुनना ही मेरी एकमात्र उपासना हो गई है।
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इसका रहस्य अनावृत करूँ, उससे पूर्व विषय बदलकर एक दूसरी बात कहना चाहता हूँ, तभी मेरी बात समझ में आएगी। हम यह शरीर नहीं, एक शाश्वत आत्मा हैं। हम स्वयं को यह देह मानते हैं, यही सब पापों का मूल है। यह शरीर इस लोकयात्रा के लिए मिला हुआ एक वाहन है। जैसे हम एक मोटर-साइकिल या मोटर-कार की देखभाल करते हैं, वैसे ही इस शरीर की देखभाल करना हमारा धर्म है। जब हम यह शरीर ही नहीं हैं तब इस शरीर से जुड़े संबंधी भी हमारे संबंधी नहीं हैं। हमारा एकमात्र संबंध परमात्मा से है, जो शाश्वत है। जैसे एक रंगमंच पर अभिनय करते हैं वैसे ही सबसे अपने अपने सम्बन्धों का अभिनय करते रहो। लेकिन वास्तविकता तो यही है कि भगवान ही हमारे एकमात्र संबंधी हैं। इस संसार में सभी का जन्म अपने पूर्वजन्मों के कर्मफलों को भुगतने, और नये कर्मों की सृष्टि करने के लिए होता है। प्रकृति के तीनों गुण ही इस सृष्टि को चला रहे हैं। त्रिगुणातीत होना ही मुक्ति और मोक्ष है।
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भ्रूमध्य में दृष्टि स्थिर कर कूटस्थ में भगवान का चिंतन, मनन और ध्यान करते-करते समय के साथ शनैः शनैः सहस्त्रार में प्रणव की ध्वनि में लिपटी हुई, विद्युत् की चमक के समान देदीप्यमान ब्रह्मज्योति ध्यान में प्रकट होती है। वह कूटस्थ ब्रहमज्योति जिसे ज्योतिर्मय ब्रह्म भी कह सकते हैं, भगवान विष्णु के चरण कमल हैं। अपनी अपनी श्रद्धानुसार वे ही गुरु महाराज के चरण-कमल हैं, वे ही भगवती के पद्म-पद हैं। उन ज्योतिर्मय ब्रह्म का आलोक - भगवान के चरणों की धूल है।
उस आलोक का निरंतर विस्तार ही हमारी साधना है। उस में स्थायी स्थिति ब्राह्मी-स्थिति या कूटस्थ-चैतन्य है। उस में परमप्रेममय स्थिति -- चरणों की धूल में स्नान है।
आज अचानक ही वह ब्रह्म-ज्योति प्रकट हुई और उसकी आभा में मैं तन्मय हो गया। अदृश्य रूप से गुरु महाराज ने बताया कि यही चरणों की धूल है जिसमें तुम स्नान कर रहे हो।
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इसकी फल-श्रुति मैं नहीं लिख सकता, क्योंकि वह छोटे मुंह बड़ी बात हो जाएगी।
और कुछ भी कहने में असमर्थ हूँ। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥ ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
५ मई २०२२
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