स्वयं भगवान ही सगे-संबंधियों और मित्रों के रूप में आते हैं। आत्मा अजर और अमर है। दिवंगत आत्माओं के प्रति हम केवल श्रद्धांजलि ही अर्पित कर सकते हैं, और अर्यमा से उनके कल्याण की प्रार्थना कर सकते हैं। अन्य कुछ भी हमारे वश में नहीं है।
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कल २९ अप्रेल २०२२ को एक ही दिन में विपरीत दिशाओं में स्थित दो अलग-अलग नगरों में मेरे दो अति प्रिय पारिवारिक निकट संबंधियों का देहावसान हो गया। दाह-संस्कार का समय अलग-अलग था -- एक का प्रातः नौ बजे और दूसरे का सायं चार बजे। अतः दोनों ही दाह संस्कारों में सपरिवार उपस्थित हो पाया। श्मसान भूमि में तो सिर्फ पुरुष ही जाते हैं। घर पर अंतिम दर्शन और श्रद्धांजलि सभी अर्पित करते हैं।
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एक तो मंडावा में बड़े धार्मिक स्वभाव की मेरी चचेरी बहिन ही थी जो मेरे से आयु में १० वर्ष बड़ी थीं। जीवन में उनसे सदा ही बहुत स्नेह और मार्गदर्शन मिला। ८५ वर्ष की आयु में भी उनकी स्मृति स्पष्ट थी। कल सायं चार बजे उनका दाह संस्कार हुआ।
दूसरे इस्लामपुर में मेरी धर्मपत्नी की मौसीजी के बड़े पुत्र थे। हमारे परिवार से बहुत अधिक स्नेह और आत्मीयता रखते थे। जीवन के सात दशक वे भी पूरे कर चुके थे। कल प्रातः नौ बजे उनका दाह संस्कार हुआ।
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मेरी आस्था तो यही है कि स्वयं परमात्मा ही सभी संबंधियों और मित्रों के रूप में आते हैं। निज जीवन में हम परमात्मा को उपलब्ध हों, यही सबसे बड़ी सेवा हम दूसरों के लिए कर सकते हैं।
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गीता में भगवान कहते हैं --
"वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥२:२२॥"
"नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥२:२३॥"
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ऋग्वेद में अर्यमा से प्रार्थना है --
"ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः।...ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय।"
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ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
३० अप्रेल २०२२
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