Friday, 6 May 2022

अपनी इष्ट देवी/देवता या सद्गुरु के चरण-कमलों का सदा ध्यान करें ---

अपनी इष्ट देवी/देवता या सद्गुरु के चरण-कमलों का सदा ध्यान करें। उनके चरण-कमलों का ध्यान ज्योतिर्मय-ब्रह्म के रूप में सहस्त्रारचक्र में करते हैं। योगी के लिए आज्ञाचक्र ही उनका हृदय होता है।

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उनकी चरण-पादुका की पूजा करनी चाहिए। उनके बीज-मंत्र का जप मानसिक रूप से निरंतर हर समय करते रहना चाहिए। स्वयं एक निमित्त मात्र बनकर उन्हीं को कर्ता बनाएँ।
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उनका ध्यान पूरी सत्यनिष्ठा से तब तक कीजिये जब तक उन की आनंदमय उपस्थिती का प्रत्यक्ष बोध न हो। फिर उनको अपने माध्यम से आपके अन्य सब आवश्यक कार्य करने दीजिये। निरंतर परमात्मा की चेतना में रहें। जीवन के हर क्षण स्वयं के माध्यम से परमात्मा को व्यक्त करें। कौन क्या कहता है, इसका कोई महत्व नहीं है। हम परमात्मा की दृष्टि में क्या हैं? -- महत्व सिर्फ इसी का है।
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मेरे साथ कुछ देर के लिए भी वे ही रह पाते हैं, जिन के हृदय में परमात्मा के प्रति कूट कूट कर प्रेम भरा हुआ है, और जो इस जीवन में परमात्मा का साक्षात्कार चाहते हैं। अन्य सब भाग जाते हैं। मेरा अनुभव तो यही है कि जिसके साथ, मैं परमात्मा की चर्चा करता हूँ, वह फिर बापस लौट कर नहीं आता। जिस किसी के साथ वेदान्त की चर्चा करता हूँ, वह तो उसी समय उठ कर चल देता है।
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वर्तमान युग, और हमारा समाज ही ऐसा है कि भगवान एक उपयोगिता की वस्तु बन कर रह गए हैं। अगर उनके माध्यम से रुपये-पैसे आदि की प्राप्ति होती है, या कष्ट दूर होते हैं तब तक तो वे ठीक हैं, अन्यथा उनका कोई उपयोग नहीं है। उनकी भक्ति को लोग Time pass या समय की बर्बादी बताते हैं। चारो ओर बहुत अधिक तमोगुण व्याप्त है। थोड़ा बहुत रजोगुण भी है। सतोगुण का तो अभाव है। कुछ भी नहीं किया जा सकता। मेरा स्वभाव है, इसलिए भगवत्-प्रेरणा से लिखता रहता हूँ। अन्यथा लोग मनोरंजन या टाइम पास के लिए ही पढ़ते हैं। कोई निष्ठावान मेरे लिखे शब्दों को पढ़ लेता है तो मैं तत्क्षण धन्य हो जाता हूँ।
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भगवान से प्रार्थना ही कर सकते हैं कि वे हमारी निरंतर रक्षा करें।
ॐ तत्सत्॥
४ मई २०२२

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