Friday, 6 May 2022

आनंदमय होना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है ---

 "यो वै भूमा तत् सुखं नाल्पे सुखमस्ति॥" -- यह वेदवाक्य मेरा आदर्श वाक्य है।

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आनंदमय होना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है। आनंद और प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए ही मैं लिखता हूँ, अन्य कोई उद्देश्य नहीं है। जीवन की संपूर्णता व विराटता को त्याग कर लघुता को अपनाना मेरी बड़ी कष्टमय दुःखद विफलता थी, जिससे मैं मुक्त होने का प्रयास कर रहा हूँ। जिसे मैं ढूँढ़ रहा हूँ, वह तो 'मैं' स्वयं हूँ। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ मई २०२२

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